क्लेश....
आत्मा में तेरी,
या अंतर में मेरे.
संदेह का बीज,
कहीं भी पनपे.
फलित तो सिर्फ,
क्लेश ही होगा.
नजर....
तुम्हारी भीनी सी,
मुस्कराहट के बीज.
बोये थे कभी,
अपनी आँखों में.
फसल अब तक,
लहलहाती है.
मुझे सातवें दशक भी,
नंबर नहीं चढ़ा.
लवण...
पिता बहा पसीना,
ले आते हैं रोटी.
वरना माएं बिलख,
कर रो देती हैं.
दोनों ही सूरतों में,
बच्चों को मिल जाता है,
लवण..
फसल काट लो...
तुम्हारे दिए हुए,
शब्दों की फसल,
तैयार हो गयी है.
आओ काट लें,
प्रीत की फलियाँ.
पक गए तो,
बनेंगे नासूर.
याद....
तुम बेशक ना आओ,
इस बार भी.
हवा से भिजवा देना पर,
एहसास का एक बीज.
पनपें तो खिलें कम से कम,
गुलमोहर तुम्हारी यादों के.
भटकटेयाँ....
जाने कौन से,
पंछी लाते हैं.
बीज भटकटेयाँ के,
मिलते ही नहीं.
तुम भी कहाँ,
मिलते हो कभी.
याद तुम्हारी यूँ,
उगी हर ओर है.
स्वभाव...
उसे स्नेह सारे बीजों से,
अंतर से अनजान धरा है.
तेरा मेरा करके मरना,
अपनी ही बस परम्परा है.
कंटीली बाड़...
पिता की रोक-टोक,
जेनेरेशन गैप नहीं.
खेत किनारे कंटीली बाड़,
रखने वाला कृषक,
बीजों से बहुत,
प्रेम करता है.
माँ....
"इमली के बीज,
मत खा लेना.
पेट में वरना,
पेड़ निकल आएगा."
नहीं माँ, आत्मा ने,
आशीष के बीज खाए.
देखो ना श्रद्धा के,
कितने वृक्ष निकल आए.
उर्वरा...
डरना मत शम्भू,
अबकी रक्तबीज से.
हमने पूरी धरा,
निचोड़ ली है.
अब कोई बीज,
हरा नहीं होता.
3 टिप्पणियाँ:
waaah! har kshanikaa bahut hi khoobsoorat...just toooooo guddddddddd...humeshaa ki tarah... :)
phir bhi mujhe "लवण...,भटकटेयाँ....,स्वभाव... evam कंटीली बाड़...sabse zyadaa pyaare lage...
Dhanyawaad Sanjay ji ...jo apne bhav pasand kiye
Vartika ji, Aap aayin bahut achchha laga..
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