नम्रता...


तिनका तिनका झड़ पड़े,
लट्ठ सहज बलवान।
लेकिन किसको तैरना,
जल को इसका ज्ञान।

पीर से पूरा भीग के भी,
तिनका आता काम।
उसको देता तैरने,
नीर का कृत्य महान।

धारण खुद में कर सके,
करे इच्छित कल्याण।
भार हीन बन जाए वो,
और पाए सम्मान।

लट्ठ काट जब नाव बने,
छोड़ दंभ अभिमान।
धारा सीना चीर के,
मार्ग दे स्वयं तमाम.

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