समझ जाओ...

आज मेरा निर्वाण है प्रियतम,
माना सुनना आसान नहीं।
लेकिन इतना संयम रख लूँ,
मैं कोई भगवान् नहीं।

मेरी मृत्यु ह्रदय तुम्हारा,
आकुलता भी शापित है।
शुष्क कनकलता की डाली,
हर पराग इक बाधित है।

नचिकेता सा ढीठ मनुज मैं,
हो तुम मुझसे अनजान नहीं।
और आज जो छूटेगा तन से,
होगा वो मेरा ही प्राण नहीं।

एक सूरज फिर है डूब चला,
सारा अम्बर आलोकित है।
मेरे जीवन की पर उष्मा,
बलि वेदी से विस्थापित है।

ना अब तुम यूँ हाहाकार करो,
हाँ करना तुम श्रृंगार नहीं।
पर ये मेरी बस विनती है,
अब तो है रहा अधिकार नहीं।

तुमको है नहीं तजा मैंने,
हाँ ह्रदय दुखी ययाति है।
आँखों को बेध के मिलती है,
जाने ये कैसी ख्याति है।

मैं नहुष नहीं, ना पुरु हूँ मैं,
हाँ हूँ मैं राजा राम नहीं।
पर मरना मेरी मज़बूरी है,
सच कहता हूँ अभिमान नहीं।

पर एक वचन तुमसे लूँगा,
कहते तो फटती छाती है।
पर मुझको तुम देखा करना,
ये पुरवा जिधर से आती है.