प्रिय ऋतु में...





नियम से नित प्रात!
कौन जाता है छींट?
स्वर्ण भस्म भर शत घट,
व्योम के पूर्वी छोर सुदूर।

कौन टेकता है छड़ी,
ध्रुवनंदा की पीठ पर?
और छिटक आती हैं बूँदें,
चंचल निष्छल स्वछंद।


कौन देता है फूंक,
किंशुक किंकिणियों में प्राण?
धर देता है शुचित मेखला,
बनैली धरती पर निचेष्ट।

कौन बजाता है वीणा,
विहंगो के कलरव की?
औ खोल देता है अनायास,
उनींदे गभुआरे उत्पल दल।

कौन खींचता है नियम से,
मारूति के नव परिपथ?
वानीर झुरमुटों के बीचोंबीच,
यत्र-तत्र काटते पगडंडियों को।


कौन पुरइन पर दधि का,
लेप देता है लगा नित?
ओस की बूँदें छुड़ाती,
जागती हैं रश्मियाँ भी।

कौन गढ़ता अल्पनायें,
पुष्प ला गुलदाउदी के?
किलोल करती वल्लरियाँ हैं,
ठठाती वृन्त-वृन्त, निकुंज भर।

कौन जलाता है हिम बिनौले,
छाजते है ग्राम-घर जो?
कि महि को देखने भर,
ढूंढता है छेद दिनकर।


कौन निश-दिन के यमल को,
प्रेम का जड़ता दिठौना?
बकुचियों के फूलते तन,
आरती में जागते हैं।

कौन करता है विदा दे,
दान-सीधा बादलों को?
कि रजत दल कांपते हैं,
मंदाकिनी की हर लहर पर।



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किंशुक= पलाश
किंकिणियाँ= घुंघरू
मेखला= एक प्रकार का वस्त्र
गभुआरे= कोमल
उत्पल= कमल
पुरइन= कमल का पत्ता
दधि= दही
दिठौना= नज़र से बचने वाला काजल का टीका
बकुचियाँ= औषधीय पौधे