सहचरी.....

तुम मेरे साथ,
गंगा के किनारे।
घुटने तक पानी,
दीन दुनिया बिसारे।
क्या फर्क पड़ता है,
कोई देखे तो?
किसी की बातें,
रोक तो नहीं सकते।
जब किसी और ने,
अपना नहीं माना।
मेरे धीर को,
बस तुमने पहचाना।
और मैंने भी तो,
तुमसे उतना ही,
प्रेम किया।
सदैव साथ ही,
तो हैं हम।
कितने एक से,
बिम्ब- प्रतिबिम्ब।
एक क्षितिज से,
गंगा गायत्री से।
लगता है न,
हमारा साथ।
युगों-कल्पों के,
हर नियम बंधन के,
पार-अपार है।
मैं ठीक कह रहा हूँ न,
तन्हाई?

बन जाऊँगा,
बरगद का पेड़।
नहीं आने दूंगा ,
सूर्य की तपिश।
रोक लूंगा वर्षा भी।
भय न हो हवा का,
तान दूंगा लताएं।
डरती हो,
जंगली जानवरों से?
भय मेरे साथ भी?
चिंतित न हो,
स्वयं को खा लूंगा,
एक कोटर बनाऊंगा,
वक्ष पर ही।
रह लेना वहीँ
भूख ???
अरे मेरे अमर,
फल खा लेना।
वरना पकड़ लूँगा,
किसी गिलहरी को।
वो बो देगी आम,
एक भुजा पर मेरी।
आम तो पसंद हैं ना?
सर्दी की चिंता,
मत करो तुम।
तुम चिंतित,
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी तपिश को,
मैं अस्थियाँ जलाउगा।
तुम बस एक बार,
ह्रदय से कहो तो.

एक सुबह धनबाद की....

ठंडी हवा का,
मनभावन झोंका।
नहा के ओस में ,
खिड़की से आया
"उठो अनुज"
हवा मेरी बड़ी,
बहन है।
झर गए रात,
अगणित फूल,
गुलमोहर के
" अरे भाई!
मेरी प्रेयसी न,
आएगी इस राह।"
नटखट डालियों ने,
बरसा दी कुछ,
बची, संजोयी,
ओस की बूँदें।
शुभ्र, शांत, धवल।
वृक्ष, मस्त मंद,
सुगन्धित वायु।
चिडियों का,
गान अगान,
और सूर्य ,
वर देता किसी,
देवता की भांति।
नीले गगन पर,
खडा अकेला विजेता।
और कुछ चारण,
सफ़ेद,
भूरे बादल से।
मधुरिम सुबह ,
दिसम्बर की।
अहा कितनी,
सुन्दर थी.

पिता...

शैतान को खौफ है उससे,
खुदा भी रंज रखता है।
इस मिटटी की दुनिया में,
वो ही महफूज रहता है।
कब्र पर नाम खुदते हैं,
गलत पिता के।
मौत होती है औलाद की,
पिता उसकी रगों में बहता है।


भाई....

जब भी मुझे शक हुआ,
खुदा की इबादत पर।
भगवान् के अस्तित्व पर।
देखा तुझे और,
यकीं हो आया।
कम से कम सच था,
लक्ष्मण और भरत का होना।


बहना.....

क्या मिलता है,
इक्यावन रुपये में?
रोरी चन्दन के टीके,
एक रसमलाई,
एक रेशमी धागा।
अरबों दुआएं,
करोडों बालाएं।
बहन की मुस्कान,
और वो इक्यावन,
रुपये तहे हुए,
बटुए में।
के भैया को,
कष्ट न हो ,
राहखर्च का।


माँ.....

दिया दिखाना दिनकर को,
मना है।
मशाल ले चलना पूनम को,
मना है।
अग्नि से पवित्र उम्मीद करना,
मना है।
तो कैसे लिखूं,
तुम्हारे बारे में माँ??


मैं.....

आदि हूँ, अनंत हूँ।
साधनारत संत हूँ।
जब भी गिरा धरा पर,
यूँ अकड़ कर खडा हो गया।
तारों को दी चुनौती,
पर्वतों से बड़ा हो गया.