पेशानी के बल....(लघुगीत)


कभी पिता के,
कन्धों का बल.
अम्मा की लुटिया,
का गंगाजल.

छुटके की किसी,
पतंग की कन्नी.
बीजगणित के,
मुश्किल हल.

खट्टे-मीठे,
जीवन तरु के.
झूमते-इठलाते,
किसलयदल.

रंग बदलते,
हैं ये पल-पल.
मेरी पेशानी,
के बल.

1 टिप्पणियाँ:

Avinash Chandra said...

Bahut bahut shukriya aapka