समंदर...(दो क्षणिकाएं..)


समंदर के अन्दर...

जाने कितने सीप-मोती,
छुपाये है अपने अन्दर.
नदियों से रोज छीन कर,
खारा साहूकार समंदर.



अन्दर का समंदर....

बहुत रोज से जमा था,
पूरे बदन के अन्दर.
आँखों से बहाता हूँ,
मैं आज ये समंदर.

3 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा said...

अरे वाह आप तो खूब लिखते हैं खूब सारा भी और बहुत खूब भी ..शुभकामनाएं ॥

रोहित said...

behad khoobsurat rachnaa,sir........

वर्तिका said...

समंदर के अन्दर... :) अन्दर का समंदर.... ;)
the intelligently chosen titles just add to the beauty of these two ...

samandar ko खारा साहूकार bataane kaa khayaal mujhe bahut pasand aaya...