एकमात्र वर...



हे तात!
आज के दिव ही,
ऐसे ही किसी क्षण,
पुण्य मन, उछाह भर,
ले आए थे तुम,
सैकत कण भर अंजुरी,
ध्रुवनंदा के किनारे से।

हे जननी!
नक्षत्रों के ठीक नीचे,
ऐसी ही किसी वेला,
ढुलका दिया था तुमने,
स्नेह-वात्सल्य से भरा,
प्रथम अजस्र पीयूष घट।

जीव, जीवन, अंश, दर्शन,
सब कार-अकार किये,
तुमसे ही प्राप्त अनुदिन।

विचर सकूँ किसी भी,
प्रकम्पित पथ भयहीन।
न हो सकूँ ग्लानिहत,
म्लान, अधीर, दम्भी।
और रहूँ सदैव प्रणत,
चरणों में अगाध श्रद्धा से।
रचयिता आज फिर से,
मुझे अजर वर यही दो।


संबोधन से परे..







अंशुमाली की प्रथम रश्मियों से,
प्रात वनिता जब धो रही होती है,
झूमते-सरसराते बाँस के झुरमुट।

और बजा रहा होता है कोई घंटा,
उस पार बलुई छोड़ हटान पर बने,
अंजनिकुमार-आजानुभुज के संयुक्त मंदिर में।

निथर आती है जब कठुली भर सुथराई,
तुलसी के हरे-काले प्रत्येक पत्तों पर,
एक समान, एक सी. स्वेच्छया, स्वतः।

तोड़ रही होती हैं उचककर लड़कियाँ,
जब तरोई-सेम-करेले अहाते से,
मुँह पर हाथ धरे खिलखिलाते हुए।

मौन कर मुक्त, उन्मुक्त रंभाती हैं जब गायें,
टुहकनी गौरैया कचरती है टूटे चावल,
गेंहूँ, जौ, दाल कुटुर-कुटुर कट-कट।

पिताजी अगोर रहे होते हैं जब अखबार,
औ' नोचने लगती हैं गिलहरियाँ अमरुद,
माँ को अइपन काढने में व्यस्त देख।

फूल रही होती हैं जब रोटियाँ सुजान आँच पर,
छुआए जा रहे होते हैं दही से लाचीदाने,
सिल घोंट रहा होता है पुदीने में टिकोरे।

कनेर गिरने लगते हैं टप-टपाक जब,
लू टहकार रही होती है शमी, अढ़उल!
धूप खेलती है अकेली ही भर ओसारे।

या धैर्य चुका सनई के खेत जब काटते हैं सूरज,
और भकुआया हुआ वो छींट जाता है,
रात का सहेजा हुआ, भगौना भर जावक।

जोड़े दिन भर की दिहाड़ी, समेटे स्वप्न,
जब लौट रहे होते हैं खेतिहर, विहंग, मजूर।
औ' रूप निहारता कोई जड़ देता है दर्पण को दिठौना।

टिमटिमाते हैं मंगल-ध्रुव, बाबा-नाना,
और बेतों से पीट-पीट करिया देती है,
विधु की पीठ, रजत वेणी वाली बुढ़िया।

जब रात चुप से टपका जाती है अमृत की असंख्य बूँदें,
गभुआरे हरसिंगार गमक उठते हैं सहसा झुण्ड-झुण्ड,
औ टपकन थाम लेती है धरित्री, प्रात से पहले -रवहीन।

ऐसे दीप्त क्षणों के सुभीते हरित निकुंज,
जो उग आता है स्व में, स्व से ही,
होता है प्रस्फुटित, अतल-तल से स्वलक्षण,
निर्मल मनोरम गतिमान अलभ्य,
सुशान्त गरिमामय, स्मितित संस्कार।
आजन्म तुमसे मेरा प्रेम वही हो।



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वनिता= स्त्री
विधु= चन्द्रमा
वेणी= चोटी
जावक= महावर
दिठौना= नज़र से बचाने वाला काजल का टीका