वो बोला नहीं करती,
या बोलती नहीं मुझसे.
या मैं ही रहता हूँ,
अनसुना-अनसुना सा.
चिलम जलाते अब्बा की,
या खींचते पानी कुँए से.
छागली के साथ खेलते भी,
बोला नहीं करती वो.
यूँ भी चिलम चिराग,
बाल्टी-कुंआ, छागली को,
जरुरत कहाँ है किसी,
ऐसी भी बातचीत की.
मेरी छुटकी भी तो,
ऐसी ही दिखती है.
हाँ बोलती बहुत है,
पटर पटर चारों पहर.
बोल पड़ी वो भी उस रोज,
"भाईजान! नए हैं रावलपिंडी में?"
क्या वाकई कुछ नया है?
"नहीं बहन, पड़ोस के गाँव से."
1 टिप्पणियाँ:
:)... i just wud say i havent read something like this before...
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