बस....


ईर्ष्या की गाथा सा कुछ,
जो तुमने है यूँ ही लिख डाला.
ना पश्चाताप करो उसका,
यूँ सलिल से उसे मिटाओ मत.

आक्रोश नहीं मुझे तुम पर,
मेरा धीर बड़ा अभिमानी है.
प्रलाप विलाप करो मत तुम,
ढोंग क्षमा का दिखाओ मत.

मुझको डुबो, सागर ना कहो.
यूँ ह्रदय जला, दिनकर ना कहो.
और पोत के अब कालिख सा कुछ,
मुझे अपना श्याम बताओ मत.

मन हुआ देख विभोर नहीं,
इस रात की हो अब भोर नहीं.
ये पिघले सीसे मत डालो,
कर्णों को मेरे भरमाओ मत.

अब बीत गए वो प्यार के दिन,
मीठे नखरे-मनुहार के दिन.
बंजर हूँ असर ही नहीं होता,
कोई बीज-कलम लगाओ मत.

आतप अब असर नहीं करती,
मुझे शीत का नाम पता ही नहीं.
मैं गर्म सा एक फफोला हूँ,
सावन की धार गिराओ मत.

1 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... said...

jab tak ehsaas bolte hain.....koi banjar nahi hota