बाँध....


पिघलती है कभी जब,
हर एक नस मेरी,
ख्याल से तुम्हारे.
भावनाओं की बाढ़ से,
ह्रदय में उफान आता है.
बहुत वक़्त हुआ अब,
पलकें रिसने लगी हैं.
या तो दिखा एक झलक,
ये बूंदें धुंआँ कर दो.
या छू लो भावहीन,
ठन्डे हाथों से मुझे.
जम जाए अन्दर ही,
अब हर जर्रा मेरे.
के ये पलकों का,
बाँध अब टूटने को है.

2 टिप्पणियाँ:

वर्तिका said...

sunder... behad sunder....

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है
आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन

Sanjay bhaskar
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com