क्षणिकाएँ...

एक पाव...

रेवड़ी-गज़क-पट्टियों के लिए,
गुड-बादाम-तिल,
हरिया रोज लाता है.
बेच मेले में इन्हें,
अपने किसनू के लिए,
बस एक पाव,
सत्तू जुटा पाता है.





फूल...

तुम मिलते रहे, खिलते रहे,
आत़े रहे, मुस्कुराते रहे.
छेड़ते रहे, चिढाते रहे.
लौट आओ ना गुलमोहर,
देखो बेर पर फूल आया है.





जून की ठिठुरन...

मेरी सर्द पलकों,
की एवज में.
तुमने कुछ रातों,
की नींद माँगी थी.
गिनती ख़त्म होने को है,
उफ़ ये जून की ठिठुरन.






सच्चे तमगे...

उनकी पेशानी पर,
बल बढ़ते जाते हैं.
और अब्बू हैं की,
मुस्कुरा कर बताते हैं.
सच्चे तमगे सीने पर,
नहीं रखे जाते हैं.







तुम्ही ईश हो...

माँ-प्रतिमा, आरती,
धूप-सुगंध, मंत्र.
आँखें बंद और,
छोटे जुड़े हाथ.
तुम्हारी खुशबू पा,
घूम जाता था.
क्या करूँ माँ,
बचपन में दिशायें,
जान नहीं पाता था.







ख़ुशी...

कल देर रात,
सरकंडों के पीछे,
सिसकती ख़ुशी मिली.
सुबह बिखराने हैं,
सच्चे मोती उसे.
मुझसे खबर छुपाने का,
वादा भी लिया.







आठ साल बाद...

वही गुलमोहर,
वही आहाता,
वही सौराशीष.
"बडी! पास्ता खाओगे?"
"नहीं लाहिड़ी, मासी हैं?"
वही मासी, वही आँखें,
"की रे छेले, कौतो वोर्ष?
बैगून भाजा खाबो?"
"होयएँ मासी,
ओइटा देखती छिलाम."
वही चमक फिर से.



ऊपर बांग्ला लिखा क्यूंकि, जो संवाद बंगाली में हुआ उसे अनुवादित काना उचित नहीं लगा.....अनुवाद है..



"की रे छेले, कौतो वोर्ष?
बैगून भाजा खाबो?"

क्या लड़के, कितने साल हुए, बैगन की पकौड़ी खाओगे?




"होयएँ मासी,
ओइटा देखती छिलाम."

हाँ मौसी, वही देख रहा था (की आप पूछें)

9 टिप्पणियाँ:

स्वप्निल तिवारी said...

behad achhi behad acxhhi triveniyaan ... tumhi ish ho sabse laazawaab laga... han fir se dimaag ne dhoika diya avi...june ki thithurtan bheje ke paar nikal gayi ...

Avinash Chandra said...

:)
Shukriya shukritaa.. :)
Triveni to likhne aata hi nahi mujhe :)

Ab june ki thithuran...

Kuch din me june aa gayegi...wo din khatm ho jaayenge, jinki raate jaagi aur palkein garm hain :)..palkein fir se sard hongi...june me thithuran ki kalpana se hi dar lagta hai na :)

Ra said...

मित्र पहले भी आया था आपके ब्लॉगपर ..परन्तु समय की कमी के कारण सही न्याय नहीं कर पाया ...बहुत ही अच्छा लिखते हो ...मिलकर प्रसन्नता हुई ...आज से शब्दों के इस सफ़र में हम भी आपके साथ है ...लिखते रहो ,,हमारी शुभकामनाये

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Acchhi rachnaye!
Sadhuwaad!
Ek sawaal: In kshnikaaon ko gadhne mein kitna samay laga?

Avinash Chandra said...

Ashish ji

shukriya..

Samay ka pata nahi...aatma ko kitna samay laga main shaayd bata nahi sakta...

kaagaz par utarne me utna hi waqt lagta hai jitna ise dubara utaarne me lagega...

meri bedhab rachnaayein ek baar ki hi hain...sampaadit nahi hotin...jara nikamaa hun :)

Avinash Chandra said...

Rajendra ji,

aapko anekon dhanyawaad mitra :)

संजय भास्‍कर said...

प्रशंसनीय - बधाई

Avinash Chandra said...

shukriya Sanjay ji

स्वप्निल तिवारी said...

oho...main barbar triveni9 kah jata hun kshanikaon ko....hehehe.... han ab khub samjh me aa gayi kshanika..:)