नहीं गाये नए गीत,
तुम्हारी याद में.
नहीं लिखीं तुम्हारे लिए,
कविता कनैल के पत्तों पर.
नहीं खरीदीं वो,
ताँत की चुन्नियाँ.
नहीं पढ़ी कोई,
अरदास तेरे लिए,
जा कर दुरुद्वारे में.
हजारीबाग के पलाश,
से कुमकुम भी,
नहीं बनाता अब.
बीते सात दिनों से,
नहीं लिखी तुम्हे,
एक भी चिट्ठी मैंने.
तुमने भी तो,
नहीं लिखी है,
सात बरसों से.
थमी ही नहीं,
सात दिनों से,
बारिश यहाँ.
तो क्या की,
तुम रहते हो,
चेरापूँजी में.
मेरी भी नाराज़गी,
ज़ायज है अपनी जगह.
2 टिप्पणियाँ:
बीते सात दिनों से,
नहीं लिखी तुम्हे,
एक भी चिट्ठी मैंने.
तुमने भी तो,
नहीं लिखी है,
सात बरसों से....
Bas aise hi ye naaraazgi man hi man badhti jaati hai ... umr beet jaati hai jaayaj aur naajaayej naaraajgi ki talaasjh mein ...
Sanjay ji
Dhanyawaad
Digambar ji,
Bilkul sahi kahaa aapne...umar yun hi beet jaati hai. Par naraz naa ho na to sirf maa ko aata hai :)
aap aaye, bahut khushi hui
Post a Comment