अल्ल सवेरे,
नहीं उठ पाता हूँ,
हमेशा ही मैं.
आज उठा, चला.
घूम फिर आया.
रास्ते में ख़ास,
सड़क से दायें,
किसी गली में,
अनायास ही घुसा.
रोक नहीं पाया,
आगे बढ़ने से,
कमबख्त क़दमों को.
बड़े दिनों से,
देखीं नहीं न,
चींटियों की बांबीयाँ.
हज़ारों चींटियाँ,
जमा थीं एक,
सूखे अखबार पर,
सोचा चीनी होगी.
बमुश्किल हटा के देखा,
लिखा था छोटा सा.
लुहार का खून,
वयस्क खंजर ने किया.
कौन खबर छुपानी है,
नेक रिश्तों को बचाने.
दानिशमंद चींटियाँ,
सब जानती हैं.
6 टिप्पणियाँ:
लुहार का खून,
वयस्क खंजर ने किया.
ye misre main relte hi nahin kar pay thi kavita se...do bar mein gehrayi se padhi tab samajh aaya..:(
:):)
कौन खबर छुपानी है,
नेक रिश्तों को बचाने.
दानिशमंद चींटियाँ,
सब जानती हैं.
...bahut achchi seedi saadi kavita..magar ant utna hi gehra...aur dil ke qareeb bhi....:):)
...baanbi waali baat badi achchi lagi...:)
aapne itna waqt diya samajhne me...shukriya di
Main shayad theek se nahi kaha paya houngaa baat ko
:)
Thank u thank u again
o tere ki...rongte khade ho gaye re avi....behad achhi nazm
:)
bahut bahut shukriya
hats offff type waali ho gayi yeh rachnbaa to....
acchaa vyagya hai avi.... cheetiyon ko pataa hai kaun khabar chupaani hai....but indian media me responsibility jaane kab aayegi....
Sach kaha aapne
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