जो रो दूँगा फूट फूट के,
कैसे मुझे पाषाण कहोगे?
झड जाऊँगा झट जो टूट के,
कैसे पर्ण का प्राण कहोगे?
प्रीत की वेदी, स्नेह की ज्वाला,
अपनेपन के घृत का हाला.
अगर पढूँगा वेद ऋचाएं,
कैसे उसे अवसान कहोगे?
अगर मनु सम नहीं मरूँगा,
और भृगु सम नहीं डरूँगा.
नहीं हसूंगा लंकाधीश सम,
कैसे फिर हे राम! कहोगे?
मुझमे सौ रत्नाकर सोये,
कोटिश घट हैं गरल के खोये.
किन्तु जो नीला पड़ जाऊं,
कैसे शम्भू नाम न दोगे?
शोक से भरे अरण्य विराजें,
हिय में बस संताप ही साजें.
किन्तु मुख पर कांति न लाऊं,
कैसे पगा अभिमान कहोगे?
जिव्हा पर अनुराग समाया,
निहित दृगों में निश्छल छाया.
हर इन्द्रिय मैं जो ना ढक लूँ,
दुर्मति कह, अपमान न दोगे.
संभव होता तो मैं रोता,
कंधे तेरे अश्रु से भिगोता.
किन्तु इससे मन बिलखेगा,
मन के चाहे काम न होंगे.
बाँध के तुमसे गाँठ मैं कोई,
जीवन धारा मोड़ तो लेता.
लेकिन इस संसार से बाहर,
तुम संसारी कहाँ रहोगे?
शोक मैं अपना तुम्हे दिखाऊं,
उर के घाव तुम्हे भी लगाऊं.
इससे अच्छा ढांप लूँ खुद को,
मेरे दुःख तो नहीं सहोगे.
कुछ लांछन खाना संभव है,
पत्थर कहलाना संभव है.
मेरी आँखें फट जायेंगी,
तुम पत्थर तो नहीं रहोगे.
4 टिप्पणियाँ:
BAHUT SUNDAR RACHNA BHAYIA........
KHAAS YE PANKTIA DIL KO CHU GAYI......
"जो रो दूँगा फूट फूट के,
कैसे मुझे पाषाण कहोगे?
झड जाऊँगा झट जो टूट के,
कैसे पर्ण का प्राण कहोगे?"
shukriya Rohit jo tum aaye
शोक मैं अपना तुम्हे दिखाऊं,
उर के घाव तुम्हे भी लगाऊं.
इससे अच्छा ढांप लूँ खुद को,
मेरे दुःख तो नहीं सहोगे.
.uff! yahan bhi samarpan....poori kavita hi hriday ko chhuti hui hai...kuch shabd hriday ko bedh se gaye..jaise :
संभव होता तो मैं रोता,
कंधे तेरे अश्रु से भिगोता.
किन्तु इससे मन बिलखेगा,
मन के चाहे काम न होंगे.
बाँध के तुमसे गाँठ मैं कोई,
जीवन धारा मोड़ तो लेता.
लेकिन इस संसार से बाहर,
तुम संसारी कहाँ रहोगे
yeh donon paa bahut door tak aphunche man mein kahin........
bahut sunder kavita hai Avinash as usual...uttam shabd chayan....
जो रो दूँगा फूट फूट के,
कैसे मुझे पाषाण कहोगे?
झड जाऊँगा झट जो टूट के,
कैसे पर्ण का प्राण कहोगे?
ye lines yaad rahengi......:):)
bahut sunder kriti k liye dher saari badhayi aur asheerwaad.........bhagwanji zor-ekalam aur khoob sara dein..
:):)
:)
shukriya shukriya :)
Post a Comment