माँ...
वो आँसुओं से ही,
सब्जी धो देती है.
नमक नहीं होता तो,
माँ फूट के रो देती है.
पिता...
अपने ही स्वेद,
नींबू निचोड़ के पिया.
जीवन हवन में,
बैठा पिता.
बच्चों की आँख से,
अश्वमेघ यज्ञ जिया.
बोलती खामोशी...
वर्णमाला और क्वर्टी*,
की जरुरत तुम्हे,
पड़ी ही कब.
खामोशी तुम्हारी,
बहुत बात करती है.
दोस्त...
मेरी बदनिगाही का,
खंजर है पेवस्त,
जिसके सीने में.
वो मुस्कुरा के,
आज भी खुद को,
सिर्फ म्यान कहता है.
तुम बिन...
नैया, केवट,
और पतवार.
पाल, जाल,
नदिया की धार.
तुम बिन है,
सब सूखा थार.
उसे फर्क नहीं पड़ता...
मिले किसी यज्ञ,
तुम्हारा भगवान तुम्हे,
तो पूछना.
आजकल,
कहाँ रहता है?
"चौक वाली मस्जिद में"
शिव मंदिर वाला खुदा,
तो मुझसे,
यही कहता है.
दोस्ती....
उठो!
हर बार तुम ही आओ,
जरुरी तो नहीं.
आज उठ कर कमल,
वायु में हिलने आया है.
चावल निकालो सुदामा,
द्वार पर दामोदर,
मिलने आया है.
*क्वर्टी= QWERTY keyboard
10 टिप्पणियाँ:
इन गलियों में तुम्हें यूँ गुजरते देखना
उन एहसासों को छूना
तुम्हें आशीर्वचनों से भर देता है
वो आँसुओं से ही,
सब्जी धो देती है.
नमक नहीं होता तो,
माँ फूट के रो देती है.
yun hi likhte rahiye.
sab achhi hain avi..aur sab samjh bhi aayeen ..:) dost wali sabse jyada pasand aayi ....uske baad dosti ka bhi zaawaab nahi raha...
हर क्षणिका बहुत कुछ कहती हुई....मन को छूती हुई....सुन्दर अभिव्यक्ति
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
Rashmi ji,
Shukriya
Sandhya ji,
Likhna to aataa nahi, par yatna karta hun, shabd jhar jaaate hain...dekhiye
Sangeeta ji
Bahut bahut shukriya aapka :)
Swapnil bhaiyaaa
Shukra hai samajh aaayi :)
Sanjay ji,
Shukriya aane kaa
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