मैं रोष यदि दिखला देता,
हर तर्क में विजय पा लेता.
तो खो देता मैत्री तुमसे,
सह वचनों को झुठला देता.
जो तुमको हर्ष नहीं देता,
मीठा सा स्पर्श नहीं देता.
तो कैसे कहता मित्र तुम्हे,
अनमोल ये जीत गँवा देता.
तुमको विचलित तो कर देता,
मैं बल को चित्रित कर देता.
किन्तु मन कानन ले कर के,
मैं हिय का मोर भुला देता.
मैं तोल पराक्रम तो देता,
विष्णु-शिव तक को भ्रम देता.
किन्तु गँगा को क्या कहता,
इर्ष्या में प्रेम घुला देता.
मैं मित्र से हारा राजा हूँ,
इस स्वर्ग का एक दरवाजा हूँ.
वो धरती मुझको खा जाती,
जो जीत के तुमको पा लेता.
हर तर्क में विजय पा लेता.
तो खो देता मैत्री तुमसे,
सह वचनों को झुठला देता.
जो तुमको हर्ष नहीं देता,
मीठा सा स्पर्श नहीं देता.
तो कैसे कहता मित्र तुम्हे,
अनमोल ये जीत गँवा देता.
तुमको विचलित तो कर देता,
मैं बल को चित्रित कर देता.
किन्तु मन कानन ले कर के,
मैं हिय का मोर भुला देता.
मैं तोल पराक्रम तो देता,
विष्णु-शिव तक को भ्रम देता.
किन्तु गँगा को क्या कहता,
इर्ष्या में प्रेम घुला देता.
मैं मित्र से हारा राजा हूँ,
इस स्वर्ग का एक दरवाजा हूँ.
वो धरती मुझको खा जाती,
जो जीत के तुमको पा लेता.
4 टिप्पणियाँ:
dosti aisi hi to hoti hai avi..shandar rachna hai ..
Haan bhaiyaa...so to hai :)
shukriya jo aap aaye
kyaaa baat hai avi... too gud.....
shukriya shukriya
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