क्षणिकाएँ (भोर)...

काली भोर...



रात रागिनी,
फुसफुस शोर.
आँख का मालिक,
हिय का चोर.
छितरा सपना,
काली भोर.





सूरज और पत्ते...


हर सुबह,
तुम, सूरज,
मैं और पुरवाई,
खेलते थे पत्ते.
अब ना तुम हो,
ना पुरवाई.
मैं हूँ और,
मेरी तन्हाई.
पागल सूरज अकेला,
पत्ते खेलता है.




अम्मा...


अम्मा तेरा,
आँचल बादल.
गोटे उसके,
तारे हैं.
और जहाँ है,
झीना थोड़ा.
दिनकर वहीँ,
हमारे हैं.



सुबह नहीं होती...


पौ फटते जो,
आ जाते थे,
मुझको ख्वाब तुम्हारे.
पूरे हुए नहीं कोई भी,
टूटे तिल तिल सारे.
अच्छा है कल से,
नाश्ते के पैसे बचेंगे.




बदली सुबह...


सुमधुर कलरव,
क्रंदन गान.
शंख पिता का,
गंगा स्नान.
चंदन, तुलसी,
शिव-शालिग्राम.
आज सुबह बस,
एक अलार्म.




माँ भोर है...


रात कितनी ही,
काली हो भले.
भोर कभी भी,
बेवफा नहीं होती,
माँ जो है.
देती है दुआ,
बच्चों से कभी,
खफा नहीं होती.




हालात...


दुखी दुपहरी,
कड़वी साँझ.
भोर सुलगती,
परेशां रात.
तुम बिन हैं,
ऐसे हालात.

10 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

हालत का बेहतरीन बयान... खूबसूरत

Unknown said...

humesha ki tarah achhi lagin kavitaayein..woh Badalti subah bahut achhi thi..bahut hi achhi...ekdum haridwaar ka scene ankhon ke aage ghoom gaya.....:):)


baaqi baq baq mail kar diya hai...:):)
hehehhee
jeete raho Motu Bhaayi..:D
aise hi likhte raho

Avinash Chandra said...

Rohitler Ji

Shukriya jo aap aaye

Avinash Chandra said...

Di,

Mail???
Koi mail to aayi hi nahi...

Anyways, ye bas info ke liye bataya aapko..
Aap aayin, padha, bahut hua :)

हरकीरत ' हीर' said...

वाह .......!!!
दूसरी और तीसरी सबसे बढ़िया लगी .......!!


हालत का बेहतरीन बयान.....?????????

रोहित said...

bhaiya!!!!!!!!!
har ek kshanika behtareen hai....
khaas "amma" or "maa bhor hai" dil ko chu gayi!!!!

Avinash Chandra said...

shukriya Harkirat ji jo aapne waqt diya

haalat ka bayan???

is praashna ka matlab nahi samjhaa main...

Rohitler ji... aap bhi jara samadhan karein

Avinash Chandra said...

Shukriya Rohit

संजय भास्‍कर said...

फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

Avinash Chandra said...

shukriya