जीवन हवन...
धूप की जलन,
शीत की चुभन.
नहीं जानते पिता,
जिनका जीवन-हवन.
इबादत...
वो जो हर हँसी,
मुझे बाँट देता है.
वो जो मेरे लिए,
अपने भाग्य की,
रेखाएँ काट देता है.
उस पिता की इबादत में,
खुदा भी हर रोज,
बन्दों का साथ देता है.
मूर्ति का पाया....
अम्मा मेरी,
स्नेह की मूरत.
पिता हैं मूर्ति,
का पाया.
माँ के चरणों,
झुका मैं जब जब.
उन्हें अति,
हर्षित पाया.
बाबूजी...
सर्दी की रजाई,
गर्मी का पँखा.
आषाढ़ की छतरी,
बाबूजी.
त्याग के माने,
फ़र्ज़ का परचम,
जीवन पटरी,
बाबूजी.
उसके आँसू..
लू के थपेड़ों पर जब,
असर नहीं करती थी दवा.
सर चूमता था रात कोई,
और ढलका देता था एक बूँद.
कोई बुखार उस बाढ़ से,
आज तक बचा नहीं.
छाले...
ताकि आ सकें मेरे,
बेरोकटोक निवाले.
मेरे पिता ने उगा लिए,
हाथ ना जाने कितने छाले.
मैंने दूर के मंदिरों में,
जाना छोड़ दिया है.
मेरा मक्का...
आज हज का,
इरादा किया है.
मक्का जाने की,
मंजूरी भी ले ली.
कल तडके ही,
अब्बा से मिलूंगा मैं.
तकिये...
पिता का कन्धा,
सदा रहा इस,
सर के नीचे.
डनलप के तकिये,
देखूँ क्यूँ भला?
शक्ल मिलती है...
सिकुड़े माथे के बल,
आयतें हैं मेरी.
सफ़ेद होती दाढी,
गीता जैसी है.
तन जाता है सीना,
जब कहते हैं लोग बाग़.
शक्ल तेरी भी जरा,
पिता जैसी है.
मुस्कान...
थका हारा वो,
रोज ही आया करता है.
आराम था दोपहर में,
हमसे बताया करता है.
पिता बच्चों को देख,
हर हाल मुस्कराया करता है.
पिघलता पिता...
जब भी बिजली नहीं होती,
और देखता हूँ,
चहक चहक कर,
जलती मोमबत्ती को.
अब्बू कुछ ज्यादा ही,
याद आत़े हैं.
4 टिप्पणियाँ:
तकिये...
पिता का कन्धा,
सदा रहा इस,
सर के नीचे.
डनलप के तकिये,
देखूँ क्यूँ भला?
is tarah ke takiye bhi khushnaseebon ko naseeb hua karte hain..:)
bhut door door tak failin yeh kshanikaayein hriday mein.....aur dimaag mein bhi......is baar ki kshanikaaon par chah kar bhi bahut kuch nahin keh paaungi shayad.bas ............aabaad raho....God Bless You
................................:)
Di,
Aapne jo nahi kaha wo aashish kal raat aaya tha mujhse milne :)
Har baaat kahi jaaye to maun ki keemat kya hogi...
Stay happy di :)
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
bahut shukriya
Post a Comment