गरलगंट...

रोटियाँ!!
नहीं होती सफ़ेद-काली.
अगर होती सिर्फ,
खा लेने के लिए.

होती हैं कागज़,
ताकि लिखे जा सकें,
आत्मा के ग्रन्थ,
शांत पेट में.

जो नहीं खाते रोटियाँ,
चावल सफ़ेद होते हैं,
उन लोगों के भी.

किसी भी महाग्रंथ का,
करना पड़ता है,
अनुवाद उस भाषा में,
जो आ सके समझ,
आम आत्मा के.

और वो हो पाता है,
केवल रोटियों,
या चावल पर,
भरे हुए पेट में.

पर यह सारी स्थितियां,
बैठती हैं सटीक,
सिर्फ हाशिये पर बैठे,
कुछ लोगों पर.

इकलौता बेरोजगार बेटा,
माँ जैसी बड़ी बहन,
तीन बेटियों के बाप,
नहीं कर पाते अनुवाद.

अनपढ़ों के गले में,
स्याही जम जाए तो,
नीला विष हो जाती है.

और पन्नों पर रखे ये,
बहुसंख्यक जीव,
नीलकंठ भी नहीं बन पाते,
बनते हैं गरलगंट.

काश! करैत ने,
शिवपुराण पढ़ा होता.

2 टिप्पणियाँ:

वर्तिका said...

avi....kyaa likh rahein hain aaj kal aap.... i mean sach...hilaa ke rakh dene waali rachnaa hai yeh bhi aur iske baad waaali bhi.... o still am numb...,

Avinash Chandra said...

Are wapaas aaiye chetna me...aisa bhi nahi kuch :)
aapne paadha sukoon hua