सम्बन्ध-विच्छेद....

तुम गीत लिखो,
और खुद गा लो.
कानों में मेरे,
कोई तार नहीं.

कल तो झट से,
कह डाला था.
कोई प्रीत नहीं,
कोई प्यार नहीं.

पीड़ा से अति,
आहत हो कर.
मुश्किल से हुआ,
गरल अन्दर.

सब स्नेह के,
तंतु काट दिए.
अब मुझ पर भी,
अधिभार नहीं.

मेरे लख रक्त,
बहे तो बहे.
आकुलता हिय में,
रहे तो रहे.

पर तेरे नाम,
गटक डाले.
किसी श्वास तेरा,
आकार नहीं.

गुडहल की कार्तिक,
लाली भर लो.
या शरद के,
हरसिंगार रहो.

नसिका है विहीन,
गंध से अब.
खुशबू का कोई,
अतिसार नहीं.

कह दो प्रीतम,
या मीत मुझे.
अपने जीवन,
का गीत मुझे.

सर पत्थर पर,
भी रखने से.
बदलेगा मेरा,
इनकार नहीं.

जो हंसोगे तो,
ना टोकूंगा.
रोने से भी,
ना रोकूँगा.

स्वप्नों में भी,
नीरवता है.
अब स्मृति में भी,
अधिकार नहीं.

6 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पीड़ा से अति,
आहात हो कर.
मुश्किल से हुआ,
गरल अन्दर.

सब स्नेह के,
तंतु काट दिए.
अब मुझ पर भी,
अधिभार नहीं.

ये पंक्तियाँ मन को छू गयीं....मन व्यथित सा हो गया...नज़्म बहुत सुन्दर है..

Avinash Chandra said...

:)

bahut bahut shukriya

स्वप्निल तिवारी said...

kya baat hai avi ... kya zabardast bhav hain ..kya flow hai ..kuch shabd to mere upar se nikal gaye..kyunki hindi achhi nahi hai itni .par fir bhi maza bahut aayaa.. :)

Unknown said...

mujhe to sab samajh aayi kavita..bahut bahut sunder peeda hai..ek ek shabd makhmal ke jaisaa..aur shaandar flow ke sath..........bhaav bhi uttam se uttam......behatreen shabd sanyojan.....all n all a complete poem Avinash..:)

...kaafi kuch is poem ko lekar keh chuki hoon..woh mera vyaktigat perception tha..yahan ek pathika ki haisiyat se likh rahin hoon.........:):)

bhav vibhor kar gayi yeh avita jitni baar padhi...:):)

Avinash Chandra said...

Are kya samajh nahi aaya aapko bhaiyaa?

Aapne fir bhi padha bahut shukriya :)

Avinash Chandra said...

Di :)

Kya kahun ab :)