कल रात उमस थी.
बह गयी एक बूँद,
मेरे भी पसीने की.
लटों से होती हुई,
कान के पीछे से.
कंधे छुए तो हुई,
हलकी सी सुरसुरी.
याद आये तुमसे,
किये अनेकों वादे.
प्रतिज्ञा और सौगंध,
जो तुमने मेरे,
साथ लीं थीं.
जम गई सभी,
वक्त के साथ साथ,
ठन्डे लहू की मानिंद.
कमबख्त पसीना ही,
नहीं समझता केवल.
एक अंगड़ाई पर,
फिसलता है.
हलकी पुरवाई पर,
मचलता है.
कल रात उमस थी.
6 टिप्पणियाँ:
उमस वैसे तो बहुत परेशान करती है .पर ये वादे याद करा देती है ..ये इस रचना को पढ़ कर जाना....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
Aapka bahut bahut shukriya :)
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
Avinash
कमबख्त पसीना ही,
नहीं समझता केवल.
एक अंगड़ाई पर,
फिसलता है.
हलकी पुरवाई पर,
मचलता है.
kya baat hai..bahut khoobsurat ..God bless u
Dhanyawaad Sanjay Sahab
Mudita ji
Is ashish ka shukriya
Post a Comment