जब जीत गया,
तो जीत गया.
जब हारा मैं,
तो हारा था.
पर अम्मा को,
एहसास नहीं था.
उसको हरदम,
मैं प्यारा था.
सुबह सूर्य,
जल्दी आता था.
मामा चाँद,
हमारा था.
इन सब से,
अनजान थी अम्मा.
मैं उसकी आँख,
का तारा था.
दिन बीते फिर,
बीते महीने.
कच्चे कोपल,
शाख बने.
चाँद ज़रा,
नजदीक हुआ है.
और कलाई,
मोटी है.
कितनी चीजें,
नई हुई हैं.
और अनेकों,
बदली हैं.
ना बदली तो,
मेरी अम्मा.
जिसने स्नेह,
ही वारा था.
आज भी राम,
है कम अम्मा से.
कल भी कम,
गुणवाला था.
5 टिप्पणियाँ:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत पवित्र भाव से रची रचना....मन को सुकून दे गयी...शुभकामनायें
न बदली तो अम्मा .....
जी हाँ ... माँ का स्नेह कभी खत्म नहीं होता ...!!
बहुत अच्छे भाव....!!
अच्छी लगी कविता ।
aap sabhi ka bahut baahut sshukriya
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