मैंने महाभारत पूरी,
कभी नहीं पढी.
भाई से भाई का द्वेष,
माता का पुत्रों में अंतर.
गुरु का अनुराग,
शिष्य की जाति से.
पिता का चढ़ाना,
बलि पुत्र को स्वयं.
बलात हर लाना,
वधु अक्षम वर हेतु.
बाँट देना बहू को,
पायस-खीर समान.
लगा देना दांव बेढब,
प्रजा भाई सपत्नीक.
उठा लेना केशव का,
चक्र तोड़ के सौगंध.
उतर आना छली देवता का,
स्वर्ण का करने भिक्षाटन.
मुझे बड़ा पानी लगता था,
गटकने में इन्हें.
पर आखिर पूरी,
कर डाली एक दिन.
और आज रामायण,
फिर से पढी.
अब जाना कौशल्या का,
द्वेशहीन प्रेम सबसे.
अब समझा महत्व,
शत्रुघ्न की चुप का.
अक्षयकुमार की मृत्यु पर,
रावण का आलाप.
जटायु की जीवटता,
संपाति का संताप.
अब जाना विराट था,
ह्रदय से भी कुम्भकर्ण.
और कितनी मंदोदरी,
सौम्य और शीतल थी.
क्यूँ आवश्यक था,
रत्नाकर से निवेदन करना.
नीतियुक्त था लक्ष्मण का,
रावण से शिक्षा आग्रह करना.
वाकई आवश्यक है,
श्यामपट्ट महाभारत का.
रामायण के ह़र श्लोक,
का मूल अर्थ समझने को.
4 टिप्पणियाँ:
Amazing thought avi...jo tulnatmak vishleshan kiya hai tumne wo lazawaab hai.. :-)
raat 2:13 paar comment.... ahem ahem :)
atulniya ..tulna.. :)
achchha laga .. :)
Apko achchha laga...lekhni ko khushi hui
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