बतकही..
निष्क्रिय कर दो,
तुम प्रेम मेरा.
निष्काम जो मैंने,
तुमसे किया.
वरना सब लोग,
कहेंगे ये ही.
अंधा था प्रेम के,
रोग जिया.
रजनी...
मैं आया नेपथ्य से रजनी,
सूर्य को लेकर साथ.
झुलसी मेरी मुट्ठी सुलझे,
छू लो तनिक यह हाथ.
देवदार...
देवदार के पेड़ पे मैंने,
तेरा नाम उकेरा था.
देवदार की टहनी से ही,
देवदार को घेरा था.
देवदार हर काट के तुमने,
अपनी बाड़ बनाई है.
देवदार की दियासलाई,
मुझमे आज जलाई है.
बदनाम खुदा...
कहा कल खुदा ने,
बेकार ही वो बदनाम है.
इबादत करती है उसकी,
पर अम्मी की दुआओं में,
सिर्फ मेरा नाम है.
वालिद....
दर्द हो तो बताते नहीं वालिद,
जख्म को दिखाते नहीं वालिद.
जब कभी होती हैं आँखें नम,
सामने मेरे आत़े नहीं वालिद.
सुनो दीदी...
मैं चाँद कहूँगा थाली को,
तुम हंस के बोलो सुन लोगी?
दूँगा जो ऊन के कुछ कतरे,
एक छोटा स्वेटर बुन दोगी?
कभी शब्द जो मेरे टूटेंगे,
जब भी सुर मुझसे रूठेंगे.
अपनी ये हंसी बिखरा कर के,
दीदी मुझको एक धुन दोगी?
सुर टंकार...
काट के प्रत्यंचा को मेरी,
सजा भले लो संगीत सितार.
किन्तु देख के वीर पुरुष को,
बजेंगे केवल सुर टंकार.
वजह...
तुम्हे छूने, चाहने,
देखने, माँगने,
झलक पाने की,
वजह दूँ.
या बता दूँ,
अपने होने की वजह?
सुना है...
सुना है शहर में,
लगा है सर्कस.
सुना है गर्मी,
बहुत बढ़ गयी है.
सुना है किल्लत,
है पानी की.
सुनता ही हूँ,
समझ नहीं पाता.
तुमने छोड़ दिया मुझे,
सुना है.
4 टिप्पणियाँ:
बतकही.... कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगों का काम है कहना..
रजनी...सुन्दर भाव
देवदार....गज़ब कि अभिव्यक्ति
बदनाम खुदा ...ये भी सच है ..
वालिद , सुनो दीदी , सुर टंकार ,वजह और सुना है....सबकी तारीफ़ के लिए अब शब्द नहीं मिल रहे....सारी ही क्षणिकाएं बहुत अच्छी हैं...
:)
Kya kaahun...maun pranam
ek ek kshanika dil mein utarti chali gayi...bahut hi achchha likhte ho avinash..lekhani ko sadhuvaad.. uttarotar unnati karo ..duayein saath hain..
Sneh
Mudita ji
:)
Aap aayin yahaan tak, bahut harsh hua
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