चुनाव...


नियति ने जब भी,
अपमान चुना.
प्रतिकार का मैंने,
ज्ञान चुना.

सब प्रहर प्रखर तो,
नहीं हुए.
सागर भी विचलित,
नहीं हुए.

नक्षत्रों ने पर,
बदली दिशा.
माणिक ने छोड़ी,
अपनी विभा.

जब स्नेह को,
बाँधा गठरी में.
बिजलिका का ही,
आह्वान चुना.

विहगों के पँख,
झडे झड से.
मेघ गिरे सब,
फट फट के.

सिंहों से श्वास,
गटक डाली.
सूर्य ने तज दी,
झट लाली.

दर्जन भर युग,
एक साथ हिले.
जब एक योगी ने,
बाण चुना.

3 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नियति ने जब भी,
अपमान चुना.
प्रतिकार का मैंने,
ज्ञान चुना.

बहुत अच्छी रचना....शब्दों का चयन तो तुम्हारा हमेशा ही श्रेष्ठ होता है ....बधाई

Avinash Chandra said...

Aap hamesha Ashish banaye rakhti hain..dhanyawaad chhota shabd hai.

Pranam

शरद कोकास said...

सुन्दर गीत है भाई । सभी मापदंड सही हैं ।