बंद गले का स्वेटर...

सुना है आजकल,
इसी शहर में हो.
और हो गए हो,
पारंगत शब्द बुनने में.

जिस भी विषय पर कहो,
लिख लेते हो तुम.
मेरे शब्दों की पोटली,
भी रख लोगे फिर.

देखो ना तुम्हारे ही,
दिए शब्द हैं.
परिचित तो होगे ही,
तुम इन सबसे अवश्य.

बिछोह, पीड़ा, तडपन,
अलगाव, संताप, एकाकीपन.
पहचान नहीं पा रहे,
यही सब है इसमें.

हाँ आँसूओं से भीग,
सीलन लग गई होगी.
पहले की ही मानिंद,
ठठा देना, सूख जाएँगे.

बुन देना तुम इनसे,
बंद गले का एक स्वेटर.
गला ज्यादा तंग हो,
तो और अच्छा है.

5 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिछोह, पीड़ा, तडपन,
अलगाव, संताप, एकाकीपन.
पहचान नहीं पा रहे,
यही सब है इसमें.

हाँ आँसूओं से भीग,
सीलन लग गई होगी.
पहले की ही मानिंद,
ठठा देना, सूख जाएँगे.

बहुत सुन्दर ...ये शब्दों की पोटली बहुत सुन्दर लगी..

मुदिता said...

बिछोह, पीड़ा, तडपन,
अलगाव, संताप, एकाकीपन.
पहचान नहीं पा रहे,
यही सब है इसमें.

हाँ आँसूओं से भीग,
सीलन लग गई होगी.
पहले की ही मानिंद,
ठठा देना, सूख जाएँगे.

bahut bhavuk abhivyakti...

Avinash Chandra said...

aap dono ko hi bahut bahut dhanyawaad

शरद कोकास said...

इतनी गर्मी मे रंगीन ऊन देख कर अच्छा लगा ।

Avinash Chandra said...

shukriya Sharad ji