मुदित जीवन......



जीर्ण, मृतप्राय, स्पन्दनहीन,
तनिका साँसों की.
जी उठती हैं,
जब किये धारण अमलान हास,
सम्मुख आ जाते हो,
तुम दूर वितानों से.

और मृत्यु का,
अनन्य-आकंठ प्रेमी.
कर देता है भंग,
हर वचन, नीति-द्वन्द.

तुम्हारा चिर प्रणय अभ्र,
उड़ेल देता है समस्त तोय.
और धिनान्त डूबते विहग,
को जैसे मिल जाता है,
अद्वेत, धिपिन दिगंत .

तारागण भी पुलकित हो,
करते हैं पुनीत आलाप.

रुक्म सम दीप्त किन्तु,
अघर्ण-मलय सी शीतल,
तुम्हारी अभीक काया.
आभास देती है जैसे,
लौटा हो विजयी,
अजातशत्रु दबीत,
अखिल-अग्रिय.

और स्वयं दर्पकहंता ,
गिरिजा संग आए हों,
देने चिरायु आशीष.
एवं गुनिता निकांदर्य,
मुस्काती हों कहीं,
बैठे श्वेत अरविंद.

हे मिहिर-मधुक-मितुल!
इस निकुंज बैठे,
इन मेहुल बूंदों धुल,
मुझे भी होता है प्राप्त,
मुदित मृगांक जीवन.



-------------------------
अभीक= भयहीन
अभ्र= बादल
अद्वेत= एक/अकेला/अद्वितीय
धिपिन= उत्साहजनक
रुक्म= स्वर्ण
धिनान्त= साँझ
अघर्ण= चन्द्रमा
दबीत= योद्धा
दर्पक= कामदेव
गुनिता= दक्ष स्त्री
तनिका= रस्सी/डोर
तोय= पानी
निकांदर्य= सरस्वती
मिहिर= सूर्य
मितुल= मित्र
मेहुल= वर्षा

13 टिप्पणियाँ:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

रचना बहुत सुन्दर है ... समझना थोडा कठिन हो जाता है ... क्यूंकि कई क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग किया है आपने ... पर अंत में शब्द सूचि के सहारे समझ पाया ...

ZEAL said...

Sundar Rachna....Padh kar anand aa gaya.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अविनाश,
तुम्हारी रचनाओं पर टिप्पणी देना एक दुष्कर कार्य है...पढ़ के हमेशा एक ही भाव मन में आता है...अद्भुत.

हरकीरत ' हीर' said...

तुम्हारा चिर प्रणय अभ्र (बादल)
उड़ेल देता है समत तोय (पानी)
और धिनांत (साँझ ) डूबते विहग को
जैसे मिल जाता है
अद्वेत ,(अद्वितीय धिपिन (उत्साहजनक ) दिगंत ....

वाह बहुत सुंदर ......!!

मुदिता said...

avinash...
arey hindi shabdkosh le kar likhte ho ya khud hi ek shabd kosh ho... kya jabardast hindi use ki hai.. aur kitni khoobsurati se bandha hai shabdon ko ..ek pravaah mein.. tumahri rachnaon ko padh kar mera hindi gyan bahut badhne wla hai :) ...didi ne sahi likha.. adbhut ...GOD bless u

Di

रश्मि प्रभा... said...

shabd to madhyam hain, tumharee bhawnayen utkrisht hain

Avinash Chandra said...

आप सभी का ह्रदय से आभार जो आपने पढ़ा और स्नेह दिया.

@हरकीरत जी,

ये अच्छा लगा, कोष्टक में मतलब लिख-लिख के पढ़ा आपने...नमन आपको, इतनी मेहनत करने के लिए.

धन्यवाद.

@मुदिता दी,

मेरे पास तो बमुश्किल एक अंग्रेज़ी शब्दकोष है ऑक्सफोर्ड का. हिंदी शब्दकोष है ही नहीं :)

मैं शब्दकोष भी नहीं.. एक बहुत निचली कक्षा का विद्यार्थी हूँ बस...कभी पढ़ा, कभी सहेजा..पर्यायवाची, पुस्तक, विवेचन, दोहे, बाबूजी, गीता, वेद, पुराण...कुछ शब्द बचे रह गए.. कुछ ढूँढे वापिस..बस यूँ ही..

कईयों के अर्थ भूल जाता हूँ, फिर ढूँढता हूँ, क्रम चलता रहता है.


बाकी "अद्भुत" जैसे विशेषण मेरे लिए नहीं बने हैं...आप लोग अनमोल नेह के साथ बहा देते हैं.... पी लेता हूँ, अबाबील का कर्म यही है :)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अविनास जी, आपके समक्ष आकर बहुत छोटा महसूस करते हैं हम अंदर से... तब जाकर लगता है कि केतना महान है हमारा भासा अऊर साहित्त, अऊर हम अछूता रह गए ई ज्ञान से... हमेसा के तरह बहुत सुंदर!!

Avinash Chandra said...

सलिल जी,

आपकी टिपण्णी का ह्रदय से धन्यवाद, किन्तु मुझमे ऐसा कुछ भी विशेष नहीं.

त्रिवेणी said...

सुंदर रचना ....
शब्द सूचि काम आई....

हरदीप

स्वप्निल तिवारी said...

shukr haiu ki arth de diya tumne.... lekin achhi khasi kasrat karwa di..aur han wo aasmaan ke dag nahi samjh aayi ..poori kavita ko aakhiri lines se connect nahi kar paya... zara samjhana...:)

अनामिका की सदायें ...... said...

अविनाश शुक्रिया जो अर्थ लिख दिए..वर्ना तुम्हारी रचनाओ के लिए डिकशनरी की दरकार होती है.

इतना क्लिष्ट मत लिखा करो जो लय में लाना दुष्कर हो.

Avinash Chandra said...

aabhar!

Anamika ji,

apko kast hua padhne me, iske liye maafi chahunga.
Mere abhipray ye nahi tha..aage se koshish karunga ki aisa kam ho.

maine wakai nahi socha tha ki ye klisht hoga..


@Swapnil bhaiya,

shukriya.
pichhli kavita me, akhiri line me ye likha hai ki...

agar tumhe (mitra ko) itne aakshep lagane hain, dosh dene hain..vish dene hain..to vishaile shabd likho...ya shyaahi ke chhinte giraao.


Mujhe bhi wo dekh hamesha yaad rahe..dost, jo aasmaan jaisa hota hai..usme bhi daag tha..

bas