समझता हूँ मजबूरी,
तुम्हारी चुप सी चुप की.
बूढ़े कदम्ब के नीचे,
पसरे घुटनों की,
बेबस बेबसी भी.
नहीं मानो शायद.
पर बनास के,
पानी से छानता हूँ,
तुम्हारे आँसुओं को,
नित्य-रोज-प्रतिदिन.
तुम्हारी एकटक टकटकी,
जो देखती है राह.
की बाँस के चौथे झुरमुट.
से निकल आऊं मैं,
हुलसती है यहाँ तक.
तुम्हारी अकेली कविताएँ,
जिनमे शब्द नहीं हैं,
देती हैं उलाहना.
" गुन सको तो,
तनिक साजो न पार्थ"
ये प्रस्तावना नहीं है,
क्षमाप्रार्थी भी नहीं मैं.
उचित ही हैं सब लांछन,
काल-कलवित श्राप भी,
मुझे स्वीकार्य हैं नव्या.
किन्तु सुगंध नसिका गुनिता,
कुछ कहूँ आज?
सदैव ही था मैं,
दो मुठ्ठी लोबान.
सच में प्रिय मैं,
मलयपुत्र नहीं था....
17 टिप्पणियाँ:
banas ke pani se pochta hun aansuon ko...kahan se late ho ye khyaal, kya sochte ho apne andar???????
अद्भुत स्वीकारोक्ति...मलयानिल न होने की!!
अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
अविनाश जी,अपने को मलयपुत्र न मानना ऐसी सुगन्ध लिये हुये है जिसके आगे कृत्रिमता के लठ्ठे बेकार हैं।
अदभुद रचना! हर शब्द गंभीर ! अंतिम पंक्तिया बिमुग्ध कर देती हैं !
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ये प्रस्तावना नहीं है,
क्षमाप्रार्थी भी नहीं मैं.
उचित ही हैं सब लांछन,
काल-कलवित श्राप भी,
मुझे स्वीकार्य हैं नव्या.
Awesome !
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i cudn't get somme words....but could feel it!
पर बनास के,
पानी से छानता हूँ,
तुम्हारे आँसुओं को,
नित्य-रोज-प्रतिदिन.
ना जाने कहाँ कहाँ से बिम्ब लाते हो....बहुत सुन्दर
आप सभी का आभार!
@Saumya
Thanks!
I would have loved to explain which words you did not get.
Anyway, you took pain and read...and you felt, thanks a lot!
Regards,
सदैव ही था मैं,
दो मुठ्ठी लोबान.
सच में प्रिय मैं,
मलयपुत्र नहीं था
..मंत्रमुग्ध कर देने वाली पंक्तियाँ.
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी
avak kar ke rakh dene walee rachana........ise umr me itnee gaharee soch aur abhivykti ko mera shat - shat naman.........saalo se south me rahkar jo hindi padna likhana choot gaya useekee bharpaee karane blog jagat kee sharan lee thee aur yanha aakar to aisaa laga ise umr me khazana hee hath lag gaya...........
Aae din ek heere se mulakat ho jatee hai.........
aasheesh
Sabhi ka aabhar
@Apanatva ji,
aapka ashish aatmsaat kiya..
charanshparsh
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