सृजन...



कुछ रोती कविताएँ,
चीत्कार करते कुछ,
अधलिखे घुनाए शब्द.

जिन पर मंडराती,
थी हरी मक्खियाँ,
पतित था प्रारब्ध.

कल निचोड़ दिए.
डाले कुछ फूल,
अमलतास-पलाश के.

आज सूखे हैं,
लहराए हैं तो,
रोग हुए हैं स्तब्ध.

बैंगनी छींटों से,
हुआ पूर्ण आसमान,
दीप्त, कोमल-लब्ध.

ओसारे में बैठी,
पुराने कपड़ों से,
रंगीन बिछावन सिलती.

माँ को देखना,
भी तो संगोष्ठी है,
महाव्याकरण है.

है ना पाणिनि?

19 टिप्पणियाँ:

अरुण चन्द्र रॉय said...

bahut gehri baat ! kavita achanak gambhir ho gai! khas taur par antim panktiya vyapak arth rakhti hui hain...
माँ को देखना,
भी तो संगोष्ठी है,
महाव्याकरण है.

है ना पाणिनी?....

रचना दीक्षित said...

माँ को देखना,
भी तो संगोष्ठी है,
महाव्याकरण है.

है ना पाणिनी?....
लाजवाब सुन्दर अभिव्यक्ति.सच है माँ तो बस माँ ही होती है

दिगम्बर नासवा said...

बहुत उत्तम ... लाजवाब ... मा अपने आप में महा ग्रंथ है ... एक शब्द में उतरा हुवा ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अंतिम पंक्तियों में आपने अचानक रस बदल दिया ...रोचक मोड़ है ...

सम्वेदना के स्वर said...

ऐसे प्रतीक...न भूतो,न भविष्यति...कमाल का बिम्ब...चित्र खिंच गया नज़रों के सामने!!

प्रवीण पाण्डेय said...

माँ के दर्शन तो एक कवितामयी वरदान है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्ण शब्द व्याकरण नहीं है
सुर संगीत का वरण नहीं है
माँ की साँसों का लेखा है
जो व्याध को देता धोखा है.

अब ई लिखने के बाद त कुछ कहने को रहिए नहीं जाता है... आप ही का बात आपको कह रहे हैं.. अऊर हाँ ..आप जो लिंक दिए थे ऊ हम पढे… बहुत पुराना कबिता है आपका.. हम 2005 में लिखे थे... लेकिन आपको पढने के बाद पता चला कि हमरा सीर्सक एकदम सही है... आपको प्रनाम!

वर्तिका said...

avi... bahut sunder rachnaa... sunder sunder se bimb... aur usse bhi sunder vah poorna chitra jo inko milaakar bunaa aapne... bas mujhe lagaa ki kuch parts kaa paragraphs mein divided honaa zaroori nahin tha... kuch ek para saath rakhe jaate to accha hotaa...

vaise amaltaas aur palaash mil jaayein to hum to vaise hi khush ho jate hain,... aur yahn to maan bhi hai...humeshaa ki taraah... :)

अजय कुमार said...

अच्छी अभिव्यक्ति ।

Avinash Chandra said...

आप सभी का ह्रदय से आभार..

@सलिल जी..
मेरी ख़ुशी तो आशीष में ही निहित है..सो वही दें. आप गुणी-अनुभवी हैं..इसीलिए स्नेह देते हैं ऐसे.

Avinash Chandra said...

@Vartika

Aap kah rahi hain to shayad theek hi hai..waise bhi padhne wala (aap to fir sun bhi leti hain) behtar jaanta hai flow aur khatke ka..hame likhte waqt laga ek bimb ek jagah ho aur fir para change...so aise likha.

jyada bariki-pechidgi jaante nahi so bahut mumkin hai gadbad hui hogi..

aage se dhyaan dene ki koshish karenge.

Aap aayin (which is a rarity now)... bahut achchha laga.


Ye upar wala rarity comment ke liye nahi hai...apki posts ke liye hai :)

ZEAL said...

माँ को देखना,
भी तो संगोष्ठी है,
महाव्याकरण है.

है ना पाणिनी?

शब्दों का इतना सुन्दर चुनाव ? माँ को देखना भी एक संगोष्ठी....वाह !.....अद्भुत !

लाजवाब कर देने वाली प्रस्तुति ।

आभार अविनाश जी।

वाणी गीत said...

ओसारे में बैठी
रंगीन कपड़ों से बिछावन सिलती
माँ को देखना भी तो एक
व्याकरण ही है ...
गज़ब ....
खूब नाम कमाया , धन कमाया ...माँ को नहीं देख पाया तो क्या पाया ...!

दिपाली "आब" said...

outstanding man.. Too good

एक विचार said...

अच्छी अभिव्यक्ति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अविनाश ,
तुम्हारी रचनाओं पर कुछ कहना हमेशा कठिन होता है...बस मन में घर कर जाती हैं...

शुभकामनायें .

स्वप्निल तिवारी said...

main kya kahun ...vartika ne kah diya jo kahna tha...par nazm mujhe bahut pasand aayi ...

KK Yadav said...

बेहतरीन लिखा ...बधाई.

Avinash Chandra said...

aap sabhi ka bahut bahut aabhar