नहीं सजे वीणा की तान जो,
बस चढ़ पाए धनुष-बाण जो.
जिन पर नव्या नहीं अघाई,
ऐसे थे चीत्कार के गीत.
जिनमे कल-कल शब्द नहीं थे,
थे सब सुर पर लब्ध नहीं थे.
जिन पर रति नहीं लहराई,
ऐसे थे हाहाकार के गीत.
जो तरुणी के अधर नहीं थे,
जो किंचित भी मधुर नहीं थे.
देख जिन्हें बदली ना छाई,
ऐसे थे दुत्कार के गीत.
भँवरे जिन पर ना बौराए,
किसी शाख भी पुष्प ना आए.
जिन पर मंथर गंगा रोई,
ऐसे थे करुण पुकार के गीत.
देवदत्त जिस दिवस लजाया,
गांडीव में था बोझ समाया.
कालध्वनि थी ऊषा की बोली,
ऐसे थे मेरी ललकार के गीत.
नारायण कीचड़ में उतरा,
पार्थ ने नैतिकता को कुतरा.
था कौन मनीषी सबने देखा,
जब बजे पूर्णटंकार के गीत..
16 टिप्पणियाँ:
लाजवाब शब्द संयोजन ... बेहतरीन कविता !
आपने तो गीत के असल सार के बारे में लिखा है ... कि जो गीत नहीं है ... फिर गीत कैसा होना चाहिए ...
नारायण कीचड़ में उतरा,
पार्थ ने नैतिकता को कुतरा.
था कौन मनीषी सबने देखा,
जब बजे पूर्णटंकार के गीत..
वाह !
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
avinash ji ,aapki yah rachna marm sparshi hone ke saath hi dil ko jhak jhor jaati hai. bahut behatreen.
poonam
वाह....तुम्हारी इस रचना से जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान दिख रहा हो...बहुत सुन्दर.....
बेहतरीन शब्द संयोजन है इस रचना में .... गहरे भाव भी हैं और आज के समय का रंग भी है ...
ohho ho..wonderful@...keep it up!
too good .....
कर्ण के कवच की तरह हैं शब्द और भाव ....
नारायण कीचड़ में उतरा,
पार्थ ने नैतिकता को कुतरा.
था कौन मनीषी सबने देखा,
जब बजे पूर्णटंकार के गीत..
इसमें वर्णन और विवरण का आकाश नहीं वरन् विश्लेषण, संकेत और व्यंजना से काम चलाया गया है। प्रयुक्त प्रतीक व उपमाएं नए हैं और सटीक भी। आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक
आपके ललकार के गीत और उसका उद्गम, दोनो भाया।
नारायण कीचड़ में उतरा,
पार्थ ने नैतिकता को कुतरा.
था कौन मनीषी सबने देखा,
जब बजे पूर्णटंकार के गीत.
क्या खूब लिखा है!!!!!!!!!!!!!!! सुंदर रचना
घुटनअऊर बेचैनी का मनोभाव आप बहुत अच्छा बिम्ब के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं... कहाँ नारायण अऊर क्या पार्थ..प्रस्न चिह्न पर समाप्त होने वाला कविता सबसे जवाब के माध्यम से जवाब माँगता है.
अबिनास जी...बस मोह लेते हैं आप सब्द संयोजन से!!
गीत में युद्ध की हाहाकार और धनुष की टंकार है ......
अद्भुत शब्द संयोजन ......!!
hamesha jaisi ultimate poem.....aap shabd kaha se dhundte h?
आप सभी का बहुत आभार!
धन्यवाद संजय जी जो आप आए...
@विवेक,
स्नेह है दोस्त, मेरे शब्दों में ऐसी कोई बात नहीं.. धन्यवाद
Post a Comment