शब्द जो बच गए...
मैं लिखता हूँ,
और चबा लेता हूँ,
कागज़-शब्द.
माँ कहती है,
करेला खाया कर,
चबा कर.
माँ ज्यादा,
चीनी खाने से,
मना भी करती है.
मैं-हरसिंगार....
जगा, खिला,
हँसा, लजाया.
उठा, महका,
फूला, बौराया.
झडा-गिरा,
माँ के आँचल में.
पूजा के फूल,
माँ नीचे नहीं,
गिरने देती.
शिकायती लिबास...
कभी मैं सुखाता हूँ,
कभी तुम.
ना ख़त्म होते हैं,
हमारी शिकायतों के,
गीले लिबास.
न उतर पाती है,
अपने दरम्यान की,
कसैली अलगनी.
चाँद............ (कॉपीराईट है कई लोगों का, पर उधारी विषय... :)..)
कटोरी, थाली,
रोटी चाँद.
खोई लूडो की,
गोटी चाँद.
किसी की चादर,
चूने का धब्बा.
किसी की साँसें,
बोटी चाँद.
रात के इन्द्रधनुष...
मेरी तुम्हारी-हमारी,
हर बात का सार,
निकल ही जाता.
तो इन्द्रधनुष,
रात ना खिलते,
मूरख आसमान?
मेरी पढ़ाई में...
सूखने लगा है,
अमराई का ताल.
घुटने तक पानी,
की जगह अब,
एडियों तक कीचड है.
पिछले साल बैल,
ट्यूबवेल अबकी,
बेच दिया है अब्बा ने.
बाबूजी...
कठिन युग झेले,
पीड़ा के तरु से,
वर मांगे कुछ,
कष्ट के किसलय.
और उसने दिया,
सदा की तरह.
डालियाँ हिला,
पराग परिमल.
8 टिप्पणियाँ:
इन क्षणिकाओं पर कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है।
Sabhi ek se badhkar ek likha hai Avinash ji.
Itni depth hai aapke chintan mein..
Maan aur babuji ke prem ko bahut khoobsurti se chitrit kiya hai..
precious creations !
Badhaai !
avi....
harsingar khub mehka
shiqayti libaas superb ek dum ..
chaand me gotiu wali baat lazawaab ..:) maza aa gaya kasam se..
raat ke indradhanush ..
bahuaayami ..indrdhanushi maayne liye hue ..
sab ek se badh kar ek
हर क्षणिका अलग महक लिए हुए....
हमेशा की तरह लाजवाब
सब की सब जबरदस्त है दोस्त.. मज़ा आ गया पढकर.. बुकमार्क किया है फ़िर से आना है..
Manoj ji,
Kya kahun is par? :)
Aap sabhi ka bahut bahut shukriya
सब में ग़ज़ब की ताज़गी है ...
dhanyawaad
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