ऐसे ही (क्षणिकाएँ..)

ऊपर की दुनिया...

कल थी बड़ी,
रौशनी उस जहां.
रात बारिश के बहाने,
ख़ुशी के आँसू,
"वो" भी रोया.
सुना कल किसी ने,
"उसे" अब्बा कहा था.



बराबर प्रेम...

वारीज पँखों पर बैठा,
तुम्हारा अप्रतिम नेह,
सूखने लगा है.
कब तक रहोगे,
धवल, हे वल्लभ!
कभी पंक उतर,
देखो तो तुम भी.



उम्र ख्वाब की...

मेरी पलकों को,
बेधता तुम्हारा ख्वाब.
निकल जाना चाहता है,
सच होने को.
पर जेठ की जमीन छूना,
संभव कब हुआ है?



दिए को चाहिए...

तमस के पन्नों पर,
आक्रान्त मन से,
झूठ के गुलाब पर,
मनुज लिखना छोडो.
ले आओ मिहिर,
की त्वरित छटास.
सरसों के फूल से,
तमनाशक को निचोड़ो.



तो प्रेम हो.....

किसने कहा प्रेमगीत,
सत्य नहीं होते?
स्टील का कटोरा,
मटका भर पानी,
नून-तेल-सत्तू,
ज्योतिर्मय प्याज.
ना जुट पाए तो,
अलग बात है.


जो दिन फिरते...

काले बादलों का,
बीहड़ क्रंदन गीत.
दिलाता है याद,
तुम्हारा दारुण बिछोह.
कहते हैं इस बार,
हथिया जबरदस्त चढ़ा है.


हथिया= एक नक्षत्र है, जिसमे अमूमन बारिश अच्छी होती है.

20 टिप्पणियाँ:

Dev K Jha said...

वाह वाह,
बेहतरीन पंक्तियां.

बराबर प्रेम...
-------------
वारीज पँखों पर बैठा,
तुम्हारा अप्रतिम नेह,
सूखने लगा है.
कब तक रहोगे,
धवल, हे वल्लभ!
कभी पंक उतर,
देखो तो तुम भी....

Anamikaghatak said...

shabda chayan ati sundar..........good luck

पारुल "पुखराज" said...

तुम्हारा दारुण बिछोह.

बहुत खूब

संगीता पुरी said...

सुदर क्षणिकाएं .. बहुत बढिया !!

Udan Tashtari said...

वाह वाह! बेहतरीन!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक से बढ़ कर एक क्षनिकाएं ....हर क्षणिका जैसे जीवन का ग्रन्थ हो...

स्वप्निल तिवारी said...

Zabardast kshanikayen hain avi..khab ka sach hona wala sabse shandar laga mujhe..hathiya nakshatra..jane kitne din bad suna ye shabd..

ZEAL said...

धवल, हे वल्लभ!
कभी पंक उतर,
देखो तो तुम भी....

waah !..kya baat keh di !

Duur baithkar sab aasaan hai, pank mein utarkar, dhawal bhi bojhal ho jata hai.

sundar rachna.

राजकुमार सोनी said...

अरे भाईसहाब
यह महज क्षणिकाएं नहीं है..
बहुत काम की चीज है यह

Saumya said...

first one is superb...so pure!

your vocab is too good!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सभी क्षणिकाएं लाजवाब हैं.
अच्छा लिखते हैं आप.
बधाई.

देवेन्द्र पाण्डेय said...
This comment has been removed by the author.
चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सुरू से लेकर आखिर तक बेजोड़.. लेकिन पहिलका अऊर अंतिम वाला हमको सबसे जादा पसंद आया... पहिलका पढकर त आँख भीज गया, एही ब्लॉग दुनिया में कोई हमको बाबू जी बोलकर बुलाया अऊर हम रो पड़े थे...
अंतिम वाला पढकर भारतेंदु जी का इयाद आ गया, टूट टाट घर टपकत, खटियो टूट...
हथिया नछत्तर हम झेले हैं, मट्टी का घर में...
अबिनास जी आप सम्बेदना के धनी हैं...

vandana gupta said...

बेहतरीन क्षणिकायें।

रचना दीक्षित said...

वारीज पँखों पर बैठा,
तुम्हारा अप्रतिम नेह,
सूखने लगा है.
कब तक रहोगे,
धवल, हे वल्लभ!
कभी पंक उतर,
देखो तो तुम भी.
हर एक क्षणिका लाजवाब हर बात मेरे दिल के करीब और उसे छूती हुई है

सदा said...

वारीज पँखों पर बैठा,
तुम्हारा अप्रतिम नेह,
सूखने लगा है.
कब तक रहोगे,
धवल, हे वल्लभ!

सुन्‍दर शब्‍द रचना, अनुपम प्रस्‍तुति ।

Avinash Chandra said...

aap sabhi ka hriday se aabhar

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जीवन के रंग से रंगी रचनाएँ।
................
पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.

दिगम्बर नासवा said...

काले बादलों का,
बीहड़ क्रंदन गीत.
दिलाता है याद,
तुम्हारा दारुण बिछोह.
कहते हैं इस बार,
हथिया जबरदस्त चढ़ा है...

बहुत खूब लिखा है ... जीवन की गाथा है .. युग का इतिहास है कुछ ही लानिओन में उतर हुवा .... लाजवाब क्षणिकाएँ हैं सब ....

Avinash Chandra said...

dhanyawaad