क्षणिकाएँ...



परी..माँ...

कहती थी बेशकीमती,
होते हैं पँख,
आसमानी परियों के.
और एक साड़ी में,
निकाल देती थी,
वो पूरा साल.





धन्यवाद...

कुएँ से पानी खींचते,
करते धान की निराई,
खटते दिन-रात बासाख्ता,
जो सदैव मुस्कुराया.
धन्यवाद परमेश्वर,
उस परम का.
जो ऐसा दिव्य,
पिता मैंने पाया.




कैसा नाता?...

ये तो तुम,
भूगोल की किताब,
में तहाए हुए,
मोरपँख से पूछो.
जो तुमने,
नौ साल पहले,
चुराया था,
मेरी किताब से.






उसका दर्द....

वो शिकायत करता था,
चिट्ठियाँ नहीं लिखने पर.
और पढ़ लेता था दर्द,
मेरी काँपती लिखावट में.
उसके भी आजकल सिर्फ,
एसएमएस आया करते हैं.





बताशे...

मेरी नाराजगी का ख्याल,
निकलता तो धमक के है.
तुम हंस देते हो.
और झेंपा हुआ वो,
पूछ बैठता है,
" पानी में डुबो,
बताशे खाए हैं कभी?"







चोर आदतें...

एडियों के बल,
उचकने की आदत.
पिता जी की जेबों में,
जेबखर्च रखने की आदत.
माँ की तरह ही,
बासी चखने की आदत.
कुछ चोर आदतें,
ना बदलें तो अच्छा.







विष..

सुना है अब,
नहीं रह गए,
विषैले तुम्हारे दाँत.
आओ सर्पमुख.
कुछ रोज रहो,
ईर्ष्या करना सीख लो.






आँखें...

चुप से लबरेज,
तुम्हारी चुपचाप आँखें,
बहुत कचोटती हैं मुझे.
मैं अपनी स्याह आँखों से,
शब्द गिराता जाता हूँ.







यकीं से...

बूंदों के तार पर,
स्नेह शब्द भिजवाऊंगा.
तुम खिड़की से,
एक सिरा इन्द्रधनुष,
थामे रखना.






अपने लिए...

मेरे लिए बात-बेबात,
रो देना उसकी आदत है.
माँ को पापा ने यूँ,
कभी और रोते नहीं देखा.

26 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

सभी क्षणिकायें लाजवाब हैं।

रश्मि प्रभा... said...

मेरी दुआ है इन चोर आदतों की लम्बी उम्र हो बेटा........सारी क्षणिकाएं दिल के पास , जीवन के नन्हें नन्हें लम्हों को तुम जीते हो और मुझे भी एक सम्मान दे जाते हो

राजेश उत्‍साही said...

अविनाश भाई इतनी सुंदर कविताओं को क्षणिकाएं कहकर अपमानित मत करो। अन्‍यथा न लें। एक समय क्षणिकाएं छोटी व्‍यंग्‍य कविताओं को कहा जाता था। पर आपकी इन कविताओं में तो जीवन का दर्शन ही समाया है। मेरा सुझाव है कि इन्‍हें केवल कविताएं ही कहें।

Avinash Chandra said...

Dhanyawaad Vandana ji

Avinash Chandra said...

Rashmi Mausi ji,

Samman to hota, diya nahi jata.
Jyoti Shikhar ne maanga kab?
aap aadarneey hain, maa hain...to samman svayam hi hai :)

Avinash Chandra said...

Rajesh ji,

Sabse pahle to dheron dhanyawaad.
Anyatha lene ka koi prashn hi nahi, aap ka anubhav evam gyaan mujhse jyada hai.

Jahan tak naamkaran ki baat hai to mujhe bhi bhaan hai ki kshanikaaon ka udgam aise hi hua tha, kintu mujhe yah vidha pasand hai aur samay ke sath paribasha badal jaaye..sundar ho jaaye to achchha.

Ye kshanikaayein, "kshanik" nahi hain...Aatmik "kshan" hai jinme yug yug baste hain...saanson ka awagaman hai jo chhota kintu shashwat hai :)

aap aaye...aabhar :)

Avinash Chandra said...

Rajesh ji,

Mujhe "Tum" kah kar hi sambodhit karein...aashish ka abhilashi hun

Avinash Chandra said...

Manoj ji,

Bahut aabhar

राजेश उत्‍साही said...

अविनाश भाई आपके यानी तुम्‍हारे तर्कों से सहमत हूं। मुझे यह याद है कि और लोगों ने भी क्षणिकाओं की दिशा गंभीरता की ओर मोड़ी है। इसीलिए व्‍यंग्‍य या हास्‍य से पगी रचनाओं को एक और नाम दिया गया था हंसिकाएं। खैर अपनी यह सोच बनाए रखो यह कामना है। और आर्शीवाद तो कहने से नहीं अपने आप ही मिलता है,वह तुम्‍हें मिल रहा है। शुभकामनाएं।

अनामिका की सदायें ...... said...

अविनाश हमेशा से ही तुम्हारी माता पिता के प्यार और उनकी यादो से लबरेज कविताये मन को भिगो जाती हैं और मा की छवि आँखों में उतर आती है.

सुंदर शब्दों से सजी क्षनिकाए.

ZEAL said...

Humesha ki tarah shaandaar aur emotional kar dene wali rachnayein.

Chor-aadat sabse achhi lagi.

Dheron badhai !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन क्षणिकाएं हैं ... खास कर ये वाली तो गजब है ...

बूंदों के तार पर,
स्नेह शब्द भिजवाऊंगा.
तुम खिड़की से,
एक सिरा इन्द्रधनुष,
थामे रखना.

दिगम्बर नासवा said...

चोर आदतें और कैसा नाता ... ग़ज़ब की क्षणिकाएँ हैं ... बहुत कुछ कहती हुई ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अबिनास जी, आज भोरे भोरे मनोज के चर्चा में आपको देखे त सोचबे किए थे कि आपसे मिलेंगे जरूर... एहाँ आए त अबाक रह गए... राजेस उत्साही जी बहुत गुनग्राही आदमी हैं, इसलिए उनका बात से सहमत है... ई कबिता को क्षणिकाएँ मत कहिए… सरोजिनी प्रीतम जी का हास्य ब्यंग याद आ जाता है. ई त अनमोल मोती हैं... सहेजने लायक...अनमोल!!

Avinash Chandra said...

Dhanyawaad Rajesh ji

Avinash Chandra said...

Sabhi ka bahut bahut shukriya.

Salil ji,

Bahut bahut dhanyawad.
Par jaisa ki maine Rajesh ji se bhi kaha, inhe kshanikaayein hi rahne dein.

रचना दीक्षित said...

क्या कहें अविनाश कुछ कहने को बचा ही कहाँ हैं हर एक बात लाजवाब बहुत गहराई,आत्मीयता और जीवन का सुक्ष्मावलोकन देखने को मिलता है हर रचना में " चोर आदत" "अलगनी" "इन्द्रधनुष" "माँ" "बाबू जी" अब क्या कहूँ....... ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अविनाश,
जब भी तुम्हारी कोई भी रचना पद्धति हूँ..दिल के बहुत करीब लगती है....चंद पंक्तियों में पूरा जीवन दर्शन होता है......माँ और बाबूजी के लिए लिखी हर कविता बहुत श्रृद्धा लिए होती है...

अभी भी बहुत व्यस्त हो? .

Avinash Chandra said...

@Rachna ji,

bahut bahut dhanyawaad.

@Sangeeta ji,

Sneh hai apka, aur kuchh bhi to nahi.

Vyast?
Kal tak to tha, apko kaise pata laga?

Par ab utna nahi hun, aap aadesh kariye. :)

नीरज गोस्वामी said...

आपकी इन विलक्षण क्षणिकाओं की प्रशंशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...कमाल लिखा है आपने...एक एक क्षणिका कई कई बार पढ़ चुका हूँ लेकिन फिर से पढने का मोह छूट नहीं रहा...वाह...इन अद्भुत भावपूर्ण रचनाओं के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज

Avinash Chandra said...

Neeraj ji,

aabhar.
Mujhe tum hi rahne denge to bahut upkaar hoga :)

manu said...

ye tumhaari chor aadtein bahut pasand aayi...



aur chaand par copyright...
ha ha ha ha ha ha ha ha

दिपाली "आब" said...

kshanikaon ka jawaab nahi, kuch to seedha dil mein utarjaati hain.. too good.. maine pehli baar itni pyaari kshanikayein padhi hain.. :)

Avinash Chandra said...

Shukriya Deepali

दिपाली "आब" said...

bahut bahut bahut pyaari kshanikayein hain.. Main jitni baar padhungi utni baar kahungi.. Brilliant avinash.. Tussi great ho

Avinash Chandra said...

Deepali,

itni taareef nahi pachegi mujhse... kyun chane ke jhaad par chadha rahi hain :)
:)