गीत-शब्द, ज्योति-शलभ,
जीवन के जीवंत पथ,
पर चलते चुभे कंटक.
अभीष्ट दावानलों,
में भी मैं तैरा.
किन्तु हे चिर!
तुमने नित्य विहान,
रश्मियों संग आ.
मल दिया मुझ पर,
ऊर्जा का नव,
परिमल बतास.
उर में भरे,
अदम्य निष्कूट,
सलिल ने जब,
तोड़ कर बाँध.
लिया संकल्प,
लेने का विदा,
दृगों से मौन,
चुपचाप बह.
असंख्य विहग,
आत्मा की आत्मीयता के.
उड़ चले हो,
वैरागी झंझा से.
और लौटाए गए,
वस्तुतः खाली हाथ.
वितान के कोने बैठे,
निर्मोही परान्जय द्वारा.
फिर भी जैसे,
उद्पादित हुए हों.
अंतस में कहीं,
नवकार्य दक्ष परिण.
एवं छिछला सा,
बौराया मन हो गया,
धवल स्वच्छ जैसे,
मिल गया हो,
एक परम परितोष.
मेरे फेनिल व्यक्तित्व,
को जैसे पिनाकी ने,
कर डाला हो शुभ्र.
और स्वयं पूनिश ने,
भर दिए हों अंक में,
पुखराज-माणिक-प्रवाल. 
तुम्हारे प्रभास का प्रभाव,
करता आया पोषित,
मेरे अंतर की रिद्धिमा को.
जैसे पवित्र पायस के,
घनघोर पायोद बन.
सुरभित करते हों,
पीयूष पराग कण.
जेठ के प्रभाकर से भी,
इन्द्रधनुष बुनवाये तुमने.
प्रदोष के अंतिम प्रद्योत,
पर भी तुमने प्रफुल,
प्रचुर प्रचेतस दीप्त किया.
पेरूमल-पवान्ज-पदमज,
होंगे नितांत ऊपर,
श्रेष्ठ अपनी जगह.
किन्तु हे पनमोली,
कल्पों करूँ पूजित,
वह प्रणव-प्राण-प्रकाश,
तुम ही हो जननी.
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परिमल= खुशबू
परान्जय= वरुणदेव, समुद्र के देव
परिण= गणेश
रिद्धिमा= प्रेम का सोता
परितोष= संतोष की अनुभूति
पिनाकी= शिव/शम्भू
पूनिश= पवित्रता के देव
प्रभास= चमक
पायोद= बादल
प्रदोष= अँधेरा
प्रद्योत= चमक
प्रचेतस= बल
पेरूमल=वेंकटेश/विष्णु 
पवान्ज=हनुमान/शिव
पदमज=ब्रम्हा
पनमोली=मीठा बोलने वाली
 
 
 
 
 
 

11 टिप्पणियाँ:
आपकी कविता मनोज जी की चिट्ठा चर्चा में भी देखी ....बधाई ....!!
भाई अविनाश चंद्रजी
आपने तो कमाल कर दिया
इतना सारा आत्मीय उजियारा, भाषा की पावनता के साथ
आनंदित कर दिया
धन्यवाद और बधाइयां
अविनाश ,
आज ये शब्दों का भण्डार कहाँ से उतार लाए हो....बहुत ,बहुत और बहुत ही अच्छी रचना....
अविनाश ,
आज ये शब्दों का भण्डार कहाँ से उतार लाए हो....बहुत ,बहुत और बहुत ही अच्छी रचना....
कठिन शब्दों का अर्थ लिखने के लिए धन्यवाद.
मन प्रसन्न हो गया आपकी कविता पढ़कर. विस्मय भी हुआ कि कैसे विज्ञान के छात्र के पास हिंदी का इतना बड़ा शब्द कोष हैं ...!
मेरे फेनिल व्यक्तित्व,
को जैसे पिनाकी ने,
कर डाला हो शुभ्र.
और स्वयं पूनिश ने,
भर दिए हों अंक में,
पुखराज-माणिक-प्रवाल.
...बहुत सुंदर .
पेरूमल-पवान्ज-पदमज ...इस शब्दों का पहली बार इतना सुंदर प्रयोग देखा.
वाह! ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएँ.
आपकी कविता शानदार है। बधाई।
समझ नहीं आता की किस तरह से तारीफ़ करूँ. दिल के बहुत करीब जा बैठी है ये कविता . बस एक ही शब्द है बेमिसाल!!!!! अद्भुत
Short of words to praise you.
Beautiful creation !
aap sabhi ka bahut bahut aabhar
बहुत भावपूर्ण -
बहुत बहुत सुंदर रचना -
बधाई
dhanyawaad
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