अम्मा की पनीली आँखें,
और पिता के शब्द सरस.
जीवन के चौबीस बरस....
अपने कहे के लिए अक्खडपन रखना मेरा नियत व्यवहार है, किन्तु आलोचना के वृक्ष प्रिय हैं मुझे।
ऐसा नहीं था कि प्रेम दीक्षायें नहीं लिखी जा सकती थीं, ऐसा भी नहीं था कि भूखे पेटों की दहाड़ नहीं लिख सकता था मैं, पर मुझे दूब की लहकन अधिक प्रिय है।
वर्ण-शब्द-व्याकरण नहीं है, सुर संगीत का वरण नहीं है। माँ की साँसों का लेखा है, जो व्याध को देता धोखा है।
सोंधे से फूल, गुलगुली सी माटी, गंगा का तीर, त्रिकोणमिति, पुरानी कुछ गेंदें, इतना ही हूँ मैं। साहित्य किसे कहते हैं? मुझे सचमुच नहीं पता।
स्वयं के वातायनों से बुर्ज-कंगूरे नहीं दिखते। हे नींव तुम पर अहर्निश प्रणत हूँ।
11 टिप्पणियाँ:
tad tad tad tad tad....dhansu ek dum dhansu .....
Shukriya Ummed ji
Swapnil bhaiya,
:)
teen panktiyan aur teeno jahan likh diya aapne... bahut sunder...
तीन लाइनों में शब्द-कोष लिख दिया ...
बहुत खूब ......!!
ये २४ वर्ष बहुत कुछ देखने के बाद मिलते हैं .....!!
क्या ये हाइकू है ....?
aap sabhi ka hriday se aabhaar.
Harkirat ji,
Ye Haiku nahi hai meri jaankari ke hisab se, kyunki uska meter hota hai kuchh shayad.
ye to pata nhai kya hai...yun hi likha hai.
Ye kal poore hue mere 24 baras hain.......aur mere chaubis baras sirf utne hain jo upar ki 2 line me likhe maine...
aap mere blog tak aayin, bahut bahut shukriya
belated happy birthday.
bahut kum shavdo me sum kuch vykt kar diya aapne....ye sanskar likh gaye panktiya...........
Aasheesh .
bahut shukriya
बहुत खूब, लाजबाब !
Sanjay ji,
dhanyawaad
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