तुम गीत लिखो,
और खुद गा लो.
कानों में मेरे,
कोई तार नहीं.
कल तो झट से,
कह डाला था.
कोई प्रीत नहीं,
कोई प्यार नहीं.
पीड़ा से अति,
आहत हो कर.
मुश्किल से हुआ,
गरल अन्दर.
सब स्नेह के,
तंतु काट दिए.
अब मुझ पर भी,
अधिभार नहीं.
मेरे लख रक्त,
बहे तो बहे.
आकुलता हिय में,
रहे तो रहे.
पर तेरे नाम,
गटक डाले.
किसी श्वास तेरा,
आकार नहीं.
गुडहल की कार्तिक,
लाली भर लो.
या शरद के,
हरसिंगार रहो.
नसिका है विहीन,
गंध से अब.
खुशबू का कोई,
अतिसार नहीं.
कह दो प्रीतम,
या मीत मुझे.
अपने जीवन,
का गीत मुझे.
सर पत्थर पर,
भी रखने से.
बदलेगा मेरा,
इनकार नहीं.
जो हंसोगे तो,
ना टोकूंगा.
रोने से भी,
ना रोकूँगा.
स्वप्नों में भी,
नीरवता है.
अब स्मृति में भी,
अधिकार नहीं.
और खुद गा लो.
कानों में मेरे,
कोई तार नहीं.
कल तो झट से,
कह डाला था.
कोई प्रीत नहीं,
कोई प्यार नहीं.
पीड़ा से अति,
आहत हो कर.
मुश्किल से हुआ,
गरल अन्दर.
सब स्नेह के,
तंतु काट दिए.
अब मुझ पर भी,
अधिभार नहीं.
मेरे लख रक्त,
बहे तो बहे.
आकुलता हिय में,
रहे तो रहे.
पर तेरे नाम,
गटक डाले.
किसी श्वास तेरा,
आकार नहीं.
गुडहल की कार्तिक,
लाली भर लो.
या शरद के,
हरसिंगार रहो.
नसिका है विहीन,
गंध से अब.
खुशबू का कोई,
अतिसार नहीं.
कह दो प्रीतम,
या मीत मुझे.
अपने जीवन,
का गीत मुझे.
सर पत्थर पर,
भी रखने से.
बदलेगा मेरा,
इनकार नहीं.
जो हंसोगे तो,
ना टोकूंगा.
रोने से भी,
ना रोकूँगा.
स्वप्नों में भी,
नीरवता है.
अब स्मृति में भी,
अधिकार नहीं.