माँ....

तुम्हारा छूना,
सहला देना.
रोटियाँ फुलाना,
बिना चिमटे के.
अजब सत्य है,
स्वप्न के जैसा.




अब्बा...

आँख खुलते ही,
छः गेंदों का डिब्बा.
अब्बू सपने में भी,
गेंद खोने नहीं देते.





शब्द...

नाराज़ शब्दों ने,
संधि की है स्याही से.
रात कलम ने,
स्वप्न थे देखे.




तुम....

ना आओ बेशक,
फजीहत ना करो.
भिजवा दो तस्वीर की,
सपने ना धुंधलाएँ.



फेर...

युगों से नहीं ,
देखे स्वप्न मैंने.
या जागा नहीं,
इतने ही वक़्त से.




पलक...

एकटक देखा तुम्हे,
पलकें नहीं झपकाईं.
सच हो तो ये,
दीद ना छूटे.
नहीं तो मीठा,
ख्वाब ना टूटे.




रण...

शीतल वृक्ष,
मंद पवन.
श्वेत ओस और,
नील गगन.
चित्त शांत और,
निर्मल मन.
आँख खुली तो,
रोज का रण.

3 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत क्षणिकाएँ .... सब की सब लाजवाब ...

शरद कोकास said...

कम शब्दों मे पूरी बात कहने का बेहतरीन प्रयास ।

Apanatva said...

bahut sunder bhav sanjoye hai aapkee har kshnika.
Badhai