कल वर्षा हुई,
मैं भी घुल गया.
भीगती ईंटों में,
धीरे धीरे घुसा.
गारे की जगह,
ईंटे जुडी थीं,
कटहल की सब्जी,
चावल के माड़,
गुलाब के पत्तों,
लूडो की गोटियों से.
वहीँ मिली मेरी,
खांसी की दवाई.
उसे पीते ही,
बड़ा हल्का हूँ.
कहो तो आज,
गा सकता हूँ.
3 टिप्पणियाँ:
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
AVINASH JI AGAR AAP KI IJAZAT HO TO YE KAVITA MAIN APNE BLOG PAR POST KARNA CHAHTA HOON........
Sanjay ji....bahut bahut shukriya
par pakshi apne need me hi ho to achchha hai naa...
ise yahin rahne dein...anurodh hai
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