नेह की बूँदें...



कल सुबह जब तुम,
उनींदी आँखों संग उठो.
तो उन्हें धोना मत.
मेरा ख़त तुम्हे मिले शायद.
ना भी मिले अगर,
तो निकाल लेना कोई,
पुराने खतों में से ही.
सभी में तो आखिर,
एक से शब्द हैं.
प्यार-मनुहार, कीमत,
स्नेह-प्रीत, जीवन,
यही सब लिखा है,
कुछ भी अलग नहीं.
पलकें दुखेंगी, मत पढ़ना.
ढलका देना बस,
नेह की कुछ बूँदें.
या तो बह जाएँ,
तुम्हारे सपनों की बाढ़ में,
ये प्रेम शब्द मेरे.
या तुम्हारा स्नेह हर,
शब्द बीज को हरा कर दे.

1 टिप्पणियाँ:

Taru said...

bahut zyada khoobsoorat hai prem yahan ...har shabd jaise khushi ke ansuon ki boondon ke jaise jhilmila raha ho.....waisi sthiti jab ansoon barse bhi nahin aur chhupein bhi nahin...ankhein jhilmila uthein neer nayan ki chamak se......aisi hi anubhooti hui is kavita ko padhkar.....:)

Very Nice Avinash.......:)