ना अमराई,
ना पुरवाई,
ना बूढ़े,
पीपल की छाँव.
खपरैले तब्दील,
हुए ईंटों में.
अब तो हैं,
रेतीले गाँव.
फाग नहीं,
न ईदुलफितर.
नहीं रहे,
चमकीले गाँव.
ज्वार-बाजरे,
की तो छोडो.
कहीं कहीं हैं,
दिखता धान.
ताल हर एक,
अनाथ हुआ है.
मातम में,
डूबे खलिहान.
ना पोशम्पा,
ना ही गिल्ली.
सबको टी- ट्वेंटी,
का ज्ञान.
चिवडा मक्का,
हुआ नदारद.
कोर्नफ्लेक्स की,
नई है शान.
नंगे बच्चों,
की किलकारी.
सरसों की वो,
चौथी क्यारी.
इनकी लाशें,
दफन किए हैं.
घाव से फूले,
टीले गाँव.
बारिश भी क्या,
असर करेगी.
अब तो हैं,
रेतीले गाँव.
2 टिप्पणियाँ:
sach kaha avi aapne.... behad sunder kriti
Shukriya Vartika ji :)
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