गीत....

कटु हार को,
जीत लिखा.
हर परिस्थिति में,
गीत लिखा.

मान दिया और,
प्रीत लिखा.
तुमको ही बस,
मीत लिखा.

तान तुम्हारी,
ह्रदय बसा के.
सरगम और,
संगीत लिखा.

अम्बर तुमको,
जो भाया तो.
मैंने नभ पे,
गीत लिखा.

साथ थे तुम तो,
पराग दोहे.
विरह में क्रंदन,
गीत लिखा.

तुम प्रिय हो,
प्रिय याद तुम्हारी.
मैंने सपनो के,
बीच लिखा.

कभी ख़ुशी में,
कभी किलकारी.
और कभी तो,
चीख लिखा.

कभी वजह,
बेवजह कभी.
बिना वृक्ष के,
बीज लिखा.

आज तो चाहा,
नहीं था मैंने.
कलम ने खुद ही,
सीख लिखा.

1 टिप्पणियाँ:

शरद कोकास said...

बिना व्रक्ष के बीज लिखा .. सुन्दर भाव है ।