1)
अब हटा दो काफिये,
गजलें मेरी तनहा हुई.
चाँद की बस रात है,
है चाँदनी रुसवा हुई.
2)
आजकल व्यस्त बहुत हैं,
बहाना-ए-आम है उनका.
सब आसमान से स्याही,
चुराने की कवायद है.
3)
एक एक कर मिटा दी,
हर धारी हथेली की.
देखने की जिद थी बस,
कब जाते हो तुम छोड़ के.
4)
के अब महरूम हूँ तुमसे,
या हूँ मरहूम दुनिया में.
मुझे मात्राओं के अंतर,
नहीं महसूस होते हैं.
5)
निगाहों में हया सी कुछ,
जुबान में पाकीजगी सी है.
कलम के देखिये जलवे,
हवा से बात करती है.
6)
अमूमन तो सात दिन,
हुआ किये हफ्तों में अब तक.
पराये शहर इतवार कुछ,
ज्यादा ही दूर लगता है.
अब हटा दो काफिये,
गजलें मेरी तनहा हुई.
चाँद की बस रात है,
है चाँदनी रुसवा हुई.
2)
आजकल व्यस्त बहुत हैं,
बहाना-ए-आम है उनका.
सब आसमान से स्याही,
चुराने की कवायद है.
3)
एक एक कर मिटा दी,
हर धारी हथेली की.
देखने की जिद थी बस,
कब जाते हो तुम छोड़ के.
4)
के अब महरूम हूँ तुमसे,
या हूँ मरहूम दुनिया में.
मुझे मात्राओं के अंतर,
नहीं महसूस होते हैं.
5)
निगाहों में हया सी कुछ,
जुबान में पाकीजगी सी है.
कलम के देखिये जलवे,
हवा से बात करती है.
6)
अमूमन तो सात दिन,
हुआ किये हफ्तों में अब तक.
पराये शहर इतवार कुछ,
ज्यादा ही दूर लगता है.
1 टिप्पणियाँ:
चाँद की बस रात है,
है चाँदनी रुसवा हुई.nice
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