इस शहर में कई पत्थर,
लोग मुश्किल, लोग पत्थर.
जीवटों से पटी धरा है,
धरा पर हैं अटे पत्थर.
कुछ अलग हैं खड़े पत्थर,
प्यार से कुछ सटे पत्थर.
हर शहर में अमूमन,
यहाँ वहाँ कहें पत्थर.
किला कोई जो बनाए,
परकोटे जमा खिंचाये.
बुर्ज हाँ जब भी बनाए,
चुने हमें ही वो पत्थर.
आओ मेरे शहर आओ,
यहाँ भी हैं वही पत्थर.
बुर्ज कईयों को लुभाए,
चढ़ अटारी सजें पत्थर.
किन्तु कोई कह रहा है,
भाई मुझपे चढ़ के जाओ.
मैं धरुंगा इस धरा को,
गगन तुम छू जाओ पत्थर.
भुजा जिसकी बल भरा हो,
ह्रदय बस धीरज धरा हो.
भार सकता है उठा जो,
है परम का पूत पत्थर.
धरा जिसको प्यार सौंपे,
धरण का अधिकार सौंपे.
बुर्ज को वो ही बचाए,
झंझावातों अड़ा पत्थर.
गर्व कब तलवार में है?
गर्व कब अधिकार में है?
सबसे पहले पग बढाए,
गर्व उस व्यवहार में है.
लो ये मैंने लोभ छोडा,
दंभ का ये बुर्ज तोडा.
गर्व मेरा नींव में है,
नींव का मैं स्वर्ण पत्थर.
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment