वो ख़त लिखती है,
काली स्याही से.
पिछले साल उसे एक,
नीली कलम दी थी.
मीठी मुस्कान के साथ,
कलम उसने ली थी.
पर अब ये क्या?
वो ख़त लिखती है,
काली स्याही में.
दिखते नहीं शब्द मुझे,
पर आंसू के १३ धब्बे,
पढ़ लेता हूँ मैं.
तब भी पढ़ लेता था,
जब वो नहीं लिखती थी.
पर अब ये क्या?
वो ख़त लिखती है,
काली स्याही में.
वही उसकी चाची की,
चिक चिक और चिरौरी.
देना उसको गुड की भेली,
खुद खाना गरम कचौडी.
तब भी दर्द समझता था,
समझता हूँ अब भी.
पर अब ये क्या?
वो ख़त लिखती है,
काली स्याही में.
बाँध देती है वो,
मुर्गे को कमरे में.
ना उठे चाची बांग से,
चिट्ठी लिखने से पहले.
बैरंग आती है चिट्ठी,
तब भी आती थी.
पर अब ये क्या?
वो ख़त लिखती है,
काली स्याही में.
आज यों ही दवात में,
खून गिरा तो जाना.
शहर ने भुला दिया,
नीले में लाल मिलाना.
काले रंग का यूँ बन जाना.
प्रेम वही है पर,
भाव कम से हो गए हैं.
मेरे , उसके नहीं....
अब समझा क्यूँ????
वो ख़त लिखती है,
काली स्याही में.
6 टिप्पणियाँ:
aaj yun hi dawaat mein khoon gira to jana....
bahut hi sashkat shabdon ka chayan. bahut hi strong rachne, gehri aur chaap chodne wali. aacha likha hai avinash ji aapne
bahut hi badhiyaa
बहुत सुंदर कली श्याई के रहस्य को उजागर करती मार्मिक कविता आपके खूबसूरत ब्लॉग पर सैर कर आनंद हुआ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है निरंतरता बनाए रखे
मेरे ब्लॉग पर पधार कर व्यंग कविताओं का आनंद लें
मेरी नई रचना दिल की बीमारी पढने आप सादर आमंत्रित हैं
बढ़िया
वाह.
पढते पढते लगा कि ज्यों कलम की नोक गड़ गयी हो जेहन में…… आँखों से लहू रिसने लगा !
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