एक सिरा दो तुम,
के पा जाएँ हम।
एक सिरा लो तुम,
के दुःख हो ज़रा कम।
ज्यादा की आस न दो,
कुछ ज्यादा अहसास न दो।
बस दो एक मधुरिम,
अदेही सम्बन्ध।
ना सागर नदी सा,
ना वृक्ष वल्लरी सा।
मुझे प्रेम न दो,
कलि और अलि सा।
बस इतना नेह रखो,
नदी के किनारे।
चलते चलते जो,
नजरें मिला लें।
चेहरे पर,
खिले मुस्कान।
दोनों अधरों पर,
हो प्रेम छन्द....
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