हर उथले गहरे पल को,
जीता एक वर्ष हूँ.
अवसाद का परम शत्रु,
मैं हर्ष हूँ.
रोते हैं जो सन्नाटे में,
नींद नहीं आने से परेशान,
जीवन के कंटको से व्यथित ,
लोगो को मीठा परामर्श हूँ,
मैं हर्ष हूँ.
घंटो जिस पर सर फोडो,
मैं ऐसा कोई विचार नहीं,
मन के सारे अंगो को,
पंगु कर दे वो विकार नहीं.
चैन से सो सको जिस पर,
मैं वो आनंद फर्श हूँ,
मैं हर्ष हूँ.
ना बुझती वो प्यास नहीं,
यूँ तो कोई ख़ास नहीं.
हरे कस्ट जो ईश नहीं.
पर मैं ईश विमर्श हूँ,
मैं हर्ष हूँ.
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