मैंने खुद को कहा मेघ कब,
कब तुझको कोयल जाना।
वृक्ष नहीं समझा है खुद को,
न तुझको वल्लरी जाना।
न मैं तिमिर का अंत प्रहर हूँ,
हरसिंगार की न तुम माला।
ना ही अमर फूल मैं पौष का,
न तुम अबाबील माना।
फिर भी कभी किसी प्रणय का,
तुमसे है ये अनय निवेदन।
जब भी मेरा दीप बुझेगा,
देना तुम अंतिम संबोधन.
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