ईश वन्दना...

पिता की...

शिवी का तन,
हड्डियां दधिची।
पिता हमारे,
स्वयं ब्रम्हर्शी।
जिम्मे उनके,
अरबों काम।
अधरों पर ,
हरदम मुस्कान।
शिव सा पीकर,
परम हलाहल।
हमें कराते,
अमृत पान।
छोटे सारे ,
वेद पुराण।
क्षणभंगुर ,
गीता का ज्ञान।
क्या है मदीना,
क्या गुरु साहिब।
वो ही मेरे,
चारो धाम।

माँ की......


दीप्ती अनल है,
भाव विह्वल है।
देख मुझे जो,
बहुत सरल है।
आँचल के ,
साए में छुपाये।
मुझको पीती,
स्वयं गरल है।
नेत्र तरल हैं,
दृष्टि विरल है।
जिसको बेटा,
सदा कमल है।
प्रेम अचल है,
स्नेह अटल है।
इस जीवन का,
घ्रुणन पटल है।
नित वंदन,
उस माँ को मेरा।
हर धमनी,
तेरा ही बल है.

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