प्रेम और मोह....

माँ का प्रेम बड़ा निच्छल है,
पिता का प्रेम भी कम तो नही।
आँचल में है माँ के ममता,
पर नमी पिता की कम तो नही।

बेडी है पांवो की मैया,
हरदम जो बांध जाती है।
सांझ सवेरे हरदम मेरे,
बेध ह्रदय को जाती है।

पिता का प्रेम अजर सा है,
जो हरदम संबल देता है।
अग्रसर हो जीवन पथ पर,
हर क्षण ये ही कहता है।

माँ को मोह है के बेटा,
मेरी गोद निहाल रहे।
जी भर भर खाए निवाले,
आँखें सुख से मालामाल रहे।

उस माँ का पुण्य ,
है उच्च बड़ा।
दर्जा उसका है ,
पूज्य बड़ा।

पर प्रेम पिता का,
उच्चतम है।
सब श्रेष्ठों में,
श्रेष्ठतम है।

उसकी लाठी ना भले बने,
बरसों चेहरा न दिखे भला।
तू रहे जहाँ उन्नति करे,
परचम फैला खुशहाल रहे।

है मोह जो माँ का व्याकुल है,
मुझको पाने को आकुल है।
वो हहर सा मुझ बिन जाती है,
आंखों से नीर बहाती है।

पर अद्भुत धीर पिता का है,
वो देता है, बस देता है।
कभी प्यार मुझे, फटकार मुझे,
कभी दुआ और दवा मुझे ।

वो पलके नही झुकाता है,
जब देता है स्टेशन पे विदा।
के देख न लूँ सागर की सी,
गीली आंखों में प्रेम बसा.




3 टिप्पणियाँ:

Unknown said...

Nice and Touchy! Last lines describing father's hidden affection and line describing mother's tears, touched to my heart.

Vinay Jain "Adinath" said...

है मोह जो माँ का व्याकुल है,
मुझको पाने को आकुल है।
वो हहर सा मुझ बिन जाती है,
आंखों से नीर बहाती है।

bahut sundar hi babu.........

!!अक्षय-मन!! said...

ati sundar mere bhai kya boluin is anmol bhavo se saji kavita ke baare main har koi maa ko hidekhta hai tumne pita ko jis tarhan se darshya hai ati uttam ...........